Sunday, April 2, 2017

एक अप्रैल

ऐसी झूठी खबर उड़ाकर तुमने कितनों को परसंताप जैसे सुख के समुच्चय को समृद्ध किया और खंडन करके परसंताप की दुनिया को सन्निपात में डाल दिया, पवित्र परसंताप तुम्हें कभी मॉफ नहीं करेगा, बेटी तुम्हें पीटेगी अलग से. अरे एक बार खबर उड़ा दी तो रहने देते थोड़े दिन, मैंने वह पढ़ा नहीं और एक घनघोर पाप से बच गया लेकिन खंडन पढ़कर घनघोर तो नहीं लेकिन,घोर पाप तो लगा ही होगा, वैसे मुझे कुछ लग नहीं रहा है, लेकिन लगने से क्या होता है. अब तुमने आज की तारीख की विशिष्टता भी याद दिला दी, लग रहा है खुद को बेवकूफ बना रहा हूं और लगना इतना तेज है कि लग रहा है जिंदगी भर खुद को बेवकूफ बना रहा हूं. एक अप्रैल है सब सबको बेवकूफ बनाते हैं, मैं तो नहीं बनाता लेकिन फिर भी मित्र भी हो (नहीं भी हो तो किसी को बतना नहीं) और मित्र के वो भी इसलिए कुछ अनजाने में बनाने जैसा हो भी तो बनना नहीं. पिछले वाक्य में भी की पुरावृत्ति को अनजाने में हुई बेवकूफी समझना. और नीलिमा उसने तो पतनशीलता की पराकाष्ठा पार कर दी. पहली बात तो भारतीय पत्नियों की मर्यादा तोड़कर नोट लिखना शुरू किया, लिख ही लिया तो पुड़िया में बंदकर संदूक में रख देना चाहिए था अगली पीढ़ियों के लानत के लिए. ज्यादा-सा-ज्यादा तुमसे शेयर कर लेती लेकिन पतनशीलता की कोई सीमा नहीं होती उसने फेसबुक पर तो शेयर किया किसी मशहूर प्रकाशक के पास भेज भी दिया. भक्तिभाव की तरह पतनशीलता भी संक्रामक है सो प्रकाश ने छापा ही नहीं प्रचारित भी किया. मेरी पतनशीलता तो खैर अक्षम्य है, उसे गरियाने वाले मर्यादित पुरुषों को गरियाने की बजाय पतनशील कविता लिख दिया. आज एक अप्रैल की महत्ता की याद दिलाकर जो अपराध तुमने किया है उसके लिए इतिहास तुम्हें कभी नहीं मॉफ करेगा क्योंकि मेरा कलम कहां से शुरू हो बड़बड़ाते कहां पहुंच गया. मैं तो तुम्हारे चक्कर में बन गया तुम मत बनना.

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