एक ग्रुप में एक कमेंट
संसद से समाजवाद ऐतिहासिक रूप से असत्य साबित हो चुका है, बल्कि निर्णायक क्षणों में संसदीय समाजवादी फासीवादियों का पथ प्रशस्त किए हैं. इसीलिए मैं बार बार अपनी छटपटाहट व्यक्त करता हूं कि एक नए इंटरनेसनल की जरूरत है जो पहले तो नवउदारवादी पूंजीवाद के चरित्र की समीक्षा करे और कारगर रणनीति का निर्माण. मुश्किल है लेकिन असंभव नहीं. संसदीय वामपंथ से हमारा अंतरविरोध शत्रुता नहीं मित्रतापूर्ण है इसलिए उनका सहयोग और उनके उचित कार्यक्रमों के समर्थन से परहेज न हो. मैंने 85 में एक लेख लिखा था 87 में छपा था मैंने उसको टाइप कराकर सेव कर लिया है, प्रूफ का मौका नहीं मिल रहा है, कॉंस्टीट्यूसनलिज्म इन इंडियन कम्युनिस्ट मबवमेंट, मिलते ही शेयर करूंगा और कोई साथी हिंदी में अनुवाद कर देंगे तो आभारी रहूंगा. 37 सालों बाद उसकी प्रासंगिकता पर छोटा विमर्श हो सकता है.
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