हम नागरिक अधिकारों में धर्म की घुसपैठ के उतना ही खिलाफ हैं, जितना राजनीति में. हम तीन तलाक की मर्दवादी प्रथा के सख्त खिलाफ हैं क्योंकि हम जाति; धर्म; क्षेत्र; भाषा; एथनिसिटी किसी भी आधार पर किसी तरह के भेदभाव के सख्त खिलाफ हैं. हम किसी भी तरह के आर्थिक अन्याय के खिलाफ हैं क्योंकि हम मानते हैं कि सारी धरती सब बासिंदों की साझी संपदा है. इसीलिए हम आर्थिक असमानता का मूल ही नष्ट करना चाहते हैं, मूल है उत्पादन-वितरण के साधनों पर निजी कॉरपोरेटी स्वामित्व। हम हर अन्याय के खिलाफ हैं क्योंकि हम अन्याय पर न्याय की श्रेष्ठता में यकीन रखते हैं, क्योंकि न्याय तर्क, विवेक, अंतरात्मा, समानुभूतिक मानवीय संवेदना की की पारस्परिक रासायनिक क्रियाओं का परिणाम है और अन्याय अंतरात्मा के हनन, कुतर्क, दुर्बुद्धि, पूर्वाग्रह-दुराग्रह का. लेकिन ऐसे लोग जो उस गौरवशाली संस्कृति के लठैत हों जिसमें अपनी विधवाओं के साथ अमानवीय अवमानना तथा अपमान का प्रावधान हो, वे मुस्लिम महिलाओं के हकों के लंबरदार बनते है तो उनकी नीयत पर शक होना लाजमी है; जिनके नेता और पत्रकार सनातनता के नाम पर सती जैसी अमानवीय प्रथा का महिमामंडन करें तो उनके मुस्लिम महिलाओं के हकों की पैरोकारी पर शक होना लाजमी है. गौरतलब है कि 1987 में देवराला कांड के पक्ष में कई भाजपा तथा बनवारी जैसे पत्रकार खुलकर सामने आ गये थे और कई छिपकर. पति की मृत्यु के बाद पूरे बाजे-गाजे के साथ सती महिमामंडन के शोर के बीच रूपकुंवर नामक युवती को जिंदा जला दिया गया था. हमने उसका जमकर विरोध किया था. बहुत से हिंदी पत्रकारों ने जनसत्ता में लिखना बंद कर दिया था. जिनके नेता कब्र से खोदकर मुसलिम महिलाओं से बलात्कार का आह्वान करे मुस्लिम महिलाओं के प्रति उनके सरोकार पर शक लाजमी है. जो चुनावी ध्रुवीकरण के लिए दंगे करवाए और सामूहिक बलात्कार, उनके मुस्लिम महिलाओं के हक़ के हिफाजत के जज्बात पर शक होना जाजमी है. हे तीन तलाकी देशभक्तों, हॉनरकिलिंग; दहेज हत्या; लव जिहाद; रोमियो-स्क्वैड तथा तमाम मर्दवादी प्रथा-मर्यादाओं के नाम पर अपनी लड़कियों-महिलाओं को मारना, प्रताड़ित करना बंद कर दें तो सब महिलाएं मिलकर तीन तलाक समेत तमामा मर्दवादी कुप्रथाओं से लड़ लेंगीं. क्या किसी और समुदाय में भी विधवा आश्रम होते हैं?
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