इस पर एक साल पहले 2-3 लेखों में लिखा हूं, एंगेल्स ने लिखा था, मार्क्सवादी वह है जो खास परिस्थिति में वैसी ही प्रतिक्रिया दे जैसा मार्क्स देते. यूरोप में नवजागरण-प्रज्ञा आंदोलनों ने जन्म आधारित याग्यता का मानक खत्म कर दिया था . सामाज में विभाजन का आधार आर्थिक था, इसीलिए मार्क्स ने लिखा कि पूंजीवाद ने वर्ग-अंतर्विरोध सरल कर दिया और समाज को दो विरोधी खेमों में बांट दिया- पूंजीपति और सर्वहारा. भारत में नवजागरण हुआ नहीं, इसलिए जन्मआधारित (जाति) सामाजिक विभाजन के खिलाफ लड़ाई भी वाम के जिम्मे थी, जिसे अंबेडकर ने शुरू किया. जयभीम लालसलाम नारों की एकता सामाजिक-आर्थिक न्याय के संघर्षों की प्रतीकात्मक एकता है, जिसे ठोस रूप देना है. बाकी बाद में.
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