काश ऐसा होता कि दलित वौद्ध या नास्तिकता के रास्ते पर होते, इससे जलितचेतना अपने आप जनवादीकरण की तरफ बढ़ती लेकिन तेजी से दलितों का सांप्रदायीकरण हो रहा है. जो चिंताजनक है. जातीय उत्पीड़न के खिलाफ वामपंथी ही लड़ते रहे हैं, लेकिन जाति-उन्मूलन का मुद्दा अलग से नहीं उठाया कि असमानता के सार्वभौमिक विरोध में जातीय असमानता शामिल है जो हमारी गलत समझ थी. सामाजिक क्रांति आर्थिक क्रांति की सहोदर है. देर आए दुरुस्त आए और जयभीम लाल सलाम का नारा दिया. अब इस नारे को सैद्धांतिक और व्यावहारिक जमीन देनी है.
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