मेरी तो फितरत है लिखना हरफ-ए-सदाकत
चुकानी पड़ती है मगर हर शौक की कीमत
चारण बन गए हैं जब जाने-माने दानिशमंद
मेरे जिम्मे है करना विद्रोह का स्वर बुलंद
बिक गए हों यदि सब चैनल और अखबार
सोसल मीडिया में करना होगा हकीकत का इजहार
सभा की इजाजत नहीं मिलता सभागारों में
आवाम से होगा संवाद नुक्कड़-सभाओं में
मिटाना है ग़र नफरत और लूट का निजाम
करना ही होगा प्रतिरोध की ज्वाला का इंतजाम
विद्रोह आवश्यक शर्त है रचनाशीलता की
विचारों का लेप है ईंधन उसकी गतिशीलता की
करता हो जमाना चाहे काज़ी-ए-वक़्त की इबादत
बुलंद करता रहूंगा मैं तो जज़्बात-ए-बगावत
(ईमि: 26.04.2017)
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