पीठ पर बस्ता और सर पर लकड़ी का बोझ
चेहरे पर साधने को असंभव पर निशाने का बोध
लड़ते हुए पढ़ेगी पढ़ते हुए लड़ेगी
और बूझेगी बचपन पर बोझ का राज़
करेगी हमला ज़ुल्मत के किले पर
बना कलम को औज़ार-ओ-हथियार
बन योद्धा हिरावल दस्ते की
लगाएगी मेहनतकश को गुहार
धसक जाएगी बुनियाद लूट-खसोट के नजाम की
हाथ लहराते हुए साथ होगी जब ज़ुल्म के मातों की कतार
(ईमि: 31.08.2016)
No comments:
Post a Comment