Thursday, August 4, 2016

हर्फ-ए-बगावत

तफसील से पढ़ना पड़ता है तुम्हारी किताब
लफ्ज-दर-लफ्ज़
कहीं कोई हर्फ-ए-सदाकत छूट न जाये
ऐसे में जब
बाइजाजत इबादत लिखने लगे हों दानिशमंदों के कलम
चंद बगावती कलमअच्छे लगते हैं
आदत है जिनकी बेइजाजत बेबाकी की
ऐसे में जब
सौ साल जीने की ख़ाहिस करें नामवर लोग
पाकर अपसंस्कृति मंत्री से उपमा
बेकार बूढ़े बैल की
लिखता रहे तुम्हारा कलम हर्फ-ए-बगावत
बेख़ौफ, बेइज़ाज़त, बेबाक
(ईमिः04.08.2016)

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