Monday, August 29, 2016

फुटनोट 73 (ब्राह्मण)

Arvind Raiसार्वजनिक बाते हर सार्वजनिक जगह होनी चाहिए. मैं एक लेखक हूं. कला कला के लिए अपराध है. मैं तफरी के लिए नहीं लिखता. अपना हर बड़ा कमेंट अपनी वाल पर पोस्ट करता हूं और ब्लाग में सेव करता हूं, भविष्य के लेखन की सामग्री के रूप में. नाम के साथ इसलिए पोस्ट करता हूं कि पाठक को लगे कि यह मौलिक पोस्ट नहीं, किसी पोस्ट पर कमेंट है. यह कमेंट भी पोस्ट करूंगा. ग्रुप के इस अनुभव पर तो एक लंबा लेख लिखूंगा. एक बार पहले निकाल कर भरती करना. जिसने भरती किया उसकी गलती है क्योंकि उसे मालुम है कि मैं कौन हूं और क्या लिखता हूं. 2 ही दिनों में मुझे 8 लोगों को ब्लॉक करने पर मजबूर होना पड़ा. मैं उन्ही को ब्लॉक करता हूं जो विषय से इतर ऊल-जलूल बातों में समय नष्ट करते हैं या मेरे बारे में ऐसी ऐसी जानकारियां देने लगते हैं जो मेरे लिए अन्यथा दुर्लभ होतीं. मैं अपना अन्वेषण स्वयं करना चाहता हूं, दूसरों के माध्यम से नहीं. बेहतर होता कि मैं इन बंद दिमागों को नज़र- अंदाज करता. लेकिन जैसा कि मेरे साथ अक्सर होता है कि भूल जाता हूं कि 41 साल पहले 20 साल था और इनकी भाषा की तमीज का श्रोत पूछ बैठता हूं.. त्रिभुवन सिंह के बजरंगीर तो ऐसे त्रशूल-तलवार तेज करके दौड़ पड़े जैसे देवलोक में कोई महिषासुर (महिषासुर पर एक किताब की समीक्षा करनी है) आगया हो. तुमलोगों के लिए तो काफी उपयोगी पाठ्य सामग्री छोड दिया था लेकिन मुझे चोरों की तरह बिन बताए निकाल कर ग्रुप(लल्ला की चुंगी) के बाकी लोगों को भी वंचित कर दिया. मुझे एक सुंदर सा विदागीत लिखकर स्व-निष्कासन के सुख से वंचित कर दिया.I am used to carrying a bit rustic-intellectual arrogance and say, "loss is yours". बहुत जनतांत्रिक हैं आप लोग? एक पोस्ट को 21 लोग पसंद करते हैं, 4-5 लोग गाली गलौच करते हैं. गाली-गलौच करने वाला कोई ऐडमिन या उसका आदमी होता है जो "सर्वसम्मति" से चोरी से बिन बताए निकाल देता है. वैसे उसका शुक्रगुजार हूं कि और भी कीीमती समय भैंस को बीन सिखाने में बर्बाद होने से बचा दिया. बहुमत हमेशा सज्जनता का होता है लेकिन सज्जनता के बहुमत की आपराधिक चुप्पी दुर्जनता के अल्पमत को खेल बिगाड़ने का मौका देती है. कोई् मेरी अंत्येष्टि की विधि जानना चाहता है तो कोई मेरे दिवंगत पिता की. जैसे इन्हे पक्का पता हो कि ये मेरे पहले नहीं मरेंगे. इनसेसे पूछ दिया कि भाषा की तमीज शाखा में सीखा, मां-बाप से या विवि में? इसमें कौन सी गाली हो गयी? यदिआप इस सवाल को गाली मानते हैं तो मतलब हुआ कि खुद भी अपनी भाषा की तमीज पर आश्वस्त नहीं हैं. मुझसे पूछिए यह सवाल. मैंने अपनी सदाकत लिखने की जुर्रत की बेबाक भाषा की तमीज अपने कॉमरेडों के साथ पढ़ते-लड़ते-बढ़ते सीखा. बां-बाप से सीखी तमीज 13 साल में जनेऊ तोड़ने के साथ भूलना शुरू कर दिया था यानि ब्राह्मणवादी संस्कारों से विद्रोह का बिगुल फूंक दिया था. गाली-गलौच संघी अतिवादियों का काम है, मेरा. नहीं मैंने किसी पर निजी आक्षेप नहीं लगाया. मैंने पहले ही आग्रह किया था कि मेरे विचारों पर बात करें निराधार निजी आक्षेप नहीं. लंपट को लंपट कहना गाली नहीं होता. वैसे मैंने किसी को लंपट नहीं कहा, सिर्फ इतना कहा कि विमर्श में विषयांतर बौद्धिक लंपटता है. लल्ला चुंगी पर 2 दिन के अनुभव पर लेख की बात फ्री प्ररे से हो गयी है. छपने के बाद शेयर करने में जो लोग उसमें जो टैग हो सकते हैं कर दूंगा. सारे चरित्र बेनाम रहेंगे.

बाकी मैंने तो आप में कभी समय निवेश की सोचा था. मैं आपको गाली क्यों दूंगा? बस बढ़-लिख कर, दिमाग इस्तेमाल करना सीख कर भूमिहार से इंसान बनने की प्रक्रिया शुरू कर दें अपनी उपलब्धि मानूंगा और आपका एहसान. शिक्षक हूं बच्चों को पढ़ाता हूं, गरियाता नहीं.
पुनश्च: चाहो तो चुंगी पर कॉपी पेस्ट कर सकते हो.

फुट नोट:
"संयोग से" मुझसे ब्राह्मणवाद की आलोचना करते हुए नाम में मिश्र पर आपत्ति करने वाले, विप्र जैसी बेहूदी गाली देने वाले और मेरी ब्लॉक लिस्ट को सुशोभित करने वालों में ज्यादातर/सभी मिश्रा/पांडे/तिवारी-त्रिपाठी/अवस्थी/शुक्ला .. ही हैं

No comments:

Post a Comment