मेरे दादा जी कट्टर पंचांगवादी कर्मकांडी थे. बहुत ताम-झाम के साथ 10 से कम उम्र में जनेऊ हुआ. उन दिनों मिनी धोती मिलती थी. सेल्फी का जमाना होता तो क्या बात थी? मगर कोई जमाना वक़्त के पहले नहीं आता, पर जमाने की सोच तो आ ही सकती है. 13 साल तक पहुंचते पहुंचते इसकी व्यर्थता नज़र आने लगी और उतारकर फेंक दिया. यह शायद बाभन से इंसान बनने की शुरुआत थी.
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