Tuesday, August 30, 2016

शिक्षा और ज्ञान 70

@ Arvind Rai मैं जानता नहीं कि त्रिभुवन का लेख क्या है.अफवाहें और गाली गलौच नहीं पढ़ता. तरस आती है इतना सीनियर डॉक्टर होकर तुच्छ फरेब करता ह फेसबुक पर बहुत समय नष्ट हो जाता है. त्रिभुवन हर संघी की तरह अफवाहें फैलाते हैं क्योंकि पढ़ने की न तो उनका प्रशिक्षण होता है न आदत. मुझे निकालने का आशय यह भी है कि मेरी पोस्ट लाइक करने वाले या न जाने का आग्रह करने वाले लोग उनके मकड़जाल से छटक न जाएं. मुझे तुमसे उम्मीदें हैं इसी लिए समय खर्च कर रहा हूं नहीं तो प्रमाण मांगिए. पहले आखिरी बात से शुरू करता हूं. मेरे मन में कोई कुंठा नहीं है, न चोट खाया हूं. भूमिहार से इंसान बनने की बात मुहावरे के रूप में करता हूं, यह तो सिर्फ आपसे कहा बाकी तो आपने देखा मैं कितनी बार खुद के बाभन से इंसान बनने की बात कर चुका हूं. संस्कार में मिली नैतिकता को विवेकसम्मत नैतिकता से विस्कीथापित करने जरूरत पड़ती है. दिमाग का मुक्त इस्तेमाल. इसके लिए ईमानदारी से आत्मावलोकन करना पड़ता है. सोचिए अगर मैं 100 मीटर उत्तर पैदा होजाता तो अलग इंसान होता? बाभन से इंसान बनने के मुहावरे का मतलब है, जन्म की जीववैज्ञानक दुर्घटना की अस्मिता से ऊपर उटकर एक चिंतनशील व्यक्ति की अस्मिता का निर्माण. अगर बाभन होना व्यक्तित्व निर्माण का कारक होता तो मिश्र, पांडे, अवस्थी, तिवारी आदि सारे बाभन गालियों की कटार लेकर मेरे पीछे क्यों पड़ जाते? आज का आखिरी ब्लॉक एक ओछा बभनपिल्ली है जो माकंडे के बिहाफ पर मेरे बुढ़पे पर लानत भेज धमकाने आया था और मैं भगवान और भूत से नहीं डरता और कुत्तों और गुंडों को खदेड़ता हूं. आप कहां पैदा हो गये उसमें आप का क्या हाथ है? कहीं भी पैदा होकर आप क्या करते हैं यह महत्वपूर्ण है. जो भी कहता है जातिवाद अंग्रेजों की देन है, वह धूर्त है या जाहिल. मैं 61या हुआ आवारा हूं कई पूर्णकालिक काम करता हूं, आवारा; ऐक्टिविस्ट; शिक्षक; लेखक; कवि (किसी मे 19 नहीं) तो हर बात मुझसे विस्तार से हर बात मत पूछिए, खुद पता कीजिए. इससे बौद्धिक आत्मविशास बढ़ेगा और फिर कोई आपको कह देगा कि यह वामपंथी विकृति है तो फिर आप मुझ पर टूट पड़ेंगे. 'अनगत्तरा निकाय' और 'दीघनिकाय', 'कौटिल्य के अर्थशास्त्र' के पहले के संकलित बौद्ध ग्रंथ है. अनेक कहानियां हैं जिनमें भिक्षु ब्राह्मणों का मजाक उड़ाते हुए कहते हैं कि ब्राह्मण कितने मूर्ख हैं कि समाज को ऊंच-नीच में बांटकर खुद को समता के सुख को वंचित रखते हैं. कौटिल्य के अर्थशास्त्र के "दुर्ग निवेश" खंड में कहा गया है कि शूद्रों को नगर के एक कोने में बसाया जाय जिससे उनकी दुर्गंध नगर में न फैले. अंत्यजों को नगर के बार. आरपी कांगले और यलयन रंगराजन के अनुवाद (अंग्रेजी) बहुत अच्छे हैं. चलिए मूल ग्रंथ नहीं पढ़ना चाहते तो प्राचीन भारत के एक महान इतिहासकार आरयस शर्मा की 'Perspectives on Idea and Institution in Ancient India' का सातवां अध्याय है "Saptang Theory in Kautilya;s Arthshastra" इस अध्याय का एक खंड है 'दुर्ग', 3-4 पेज होगा, पढ़ लें. वैसे "बाभन से इंसान बनने का मुहावरे के मौलिक रचइता शर्मा जी ही हैं.(दिवंगत शर्माजी दिवि में प्रोफेसर थे)1986 (रिटायरमेंट के 2 साल पहले) राजधानी से पटना जाते हुए सुखद संयोग से उनकी बगल में मेरी बर्थ थी. मैं तो पहले से जानता था. वे पटना अपने घर जा रहे थे और मैं अरवल दनसंहार की फैक्ट फाइंडिंग में. हमारी दोस्ती हो गयी उन्होने प्राचीन भारत में राज्य के उदय पर हस्ताक्षर युक्त पुस्तक भेट किया. बात चीत में उन्होंने कहा, "अरे यार हमारा समाज ऐसा जड़ है कि मानने को तैयार ही नहीं होता कि मैं स्टूडेंट लाइफ में ही भूमिहार से इंसान बन गया था" मैने कहा " सर मैं भी बाभन से इंसान बन गया हूं." हम दोनों खूब हंसे. मुझे लगा इतना बड़ा आदमी इतना सहज, लेकिन बड़ा आदमी सहज होता ही है. माफ करना शर्माजी की याद आ गई और लंबे फुटनोट में फंस गया. मनुस्मृति में साफ लिखा है कि शूद्र और औरत गलती से भी वेदमंत्र सुन लें तो उनके कान में पिघलता सीसा डाल देना चाहिए. "बचपन में उसे पिता के आधीन रहना चाहिए, शादी के बाद अपने स्वामी के और स्वामी की मौत के बाद अपने बच्चों के. एक औरत को कभी आजाद नहीं होने देना चाहिए". तुलसी की चौपाई "ढोल, गंवार शूद्र, पशु नारी, ये सब तोड़न के अधिकारी" तो सर्वविदित है. किसी बात के बारे में लिखा तब जाता है जब उसका अस्तित्व होता है. ये सब अंग्रेजों के पहले के हैं. मेरे बचपन में जाति की यही व्यवस्था थी. हमारे बाप-दादा चमरौटी नहीं जाते थे मजदूर बुलाने, दूर से गाली देकर बुलाते थे कि इतनी दिन निल आया और आए नहीं. जो भी कुछ कहे उसका प्रमाण मांगो. जिसका प्रमाण नहीं वह असत्य है. त्रिभुवन जैसे लोगों को पता नहीं क्या मिलता है, अफवाहों से माहौल विसाक्त करने में. पढ़ना शुरू करो.( मनुस्मृति, ऋगवेद सबह नेट पर उपलब्ध हैं), सोचना शुरू करो और भूमिहार से चिंतनशील इंसान बनने की प्रक्रिया शुरू कर दो. मैं राष्ट्रोंमाद पर लेख बीच में छोड़कर तुम्हारा जवाब दिया. किसी की या मेरी बात से राय मत बनाओ. तथ्यान्वेषण करो, नहीं तो आगे से जवाब नहीं दूंगा. शुभाशिष.

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