जहालतों में जहालत-ए-आज़म है सियासी ज़हालत
वह न सुनता है न बोलता है न ही शरीक होता किसी प्रदर्शन में
क्योंकि वह नहीं समझता सियासत का मतलब
वह सियासी जाहिल है
नहीं जानता कि सियासत ही तय करती है
रोटी-पानी दवा-दारू आज़ादी-गुलामी के मूल्य
इतना ही नहीं वही तय करती है कीमत ज़िंदगी की भी
ये ज़ाहिल इतने ज़ाहिल हैं कि शर्म की तो बात दूर
फ़क़्र करते हैं सियासी जहालत पर
और सियासत से नफरत सौतेली औलाद की तरह
वह बंद दिमाग नहीं जानता
कि उसी की जहालत के नतीजे हैं
लावारिश बच्चे तथा वेश्यावृत्ति
उसी का नतीजा है
चोर उचक्कों का बन जाना सियासत के सिररमौर
जो खुले आम करते हैं देशी-विदेशी कंपनियों की दलाली
और मुल्क की नीलामी
रोकना है ग़र आवाम की तबाही तथा विनाश का विकास
समझना पड़ेगा सियासत का अर्थशास्त्र
और तय करना पड़ेगी अपनी सियासत
गर चाहते हो मानवता की मुक्ति
कॉरपोरेटी हैवानों से
खोलने पड़ेंगे सियासत के मदरसे
हर शहर में हर गली हर गांव में
जैसे जैसे छंटेंगे सियासी जहालत के बादल
एक-एक कर ध्वस्त होतते रहेगे
दलाली की सियासत के खंभे
तब शुरू होगी एक नई सियासत
सचमुच के जम्हूरियत की सियासत
(ईमिः08.07.2015)
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