Inder Mohan Kapahy सर, भूमंडलीय पूंजी के जरखरीद गुलामों को विश्वविद्यालय व्यवस्था नष्ट करके शिक्षा के पूर्ण बाजारीकरण का एजेंडा लागू करने से रोकने के लिए चिट्ठी लिखना बेअसर होगा. इसे करो-मरो के संघर्ष से ही रोका जा सकता है. विश्वबैंक से अायातित शिक्षा नीति से दिमागों का उपनिवेशीकरण, भूमंडलीय साम्राज्यवाद की समग्र नीति का हिस्सा है. शिक्षक अांदोलन को छात्र आंदोलन के साथ मिलकर किसान-मजदूर आाांदोलनों से जोड़ना पड़ेगा. मुल्क के भविष्य को विकृत तथा नष्ट करने वाली सांम्राज्यवादी शिक्षा नीति को नाकाम करने के लिए समग्र हड़ताल की जरूरत है, एक शैक्षणिक सत्र को ज़ीरो ईयर क्यों न घोषित करना पड़े क्योंकि इतिहास को विकृत होने से बचाने के लिए एक साल का बलिदान दिया जा सकता है. डूटा के प्रमुख घटक सौभाग्य से इस मुद्दे पर एकमत हैं, वामपंथी छात्रसंठन पहले से ही डूटा के साथ हैं अन्य संगठनों तथा सामान्य छात्रों सा बातचीत की जा सकती है क्योंकि मूलतः मुद्दा तो छात्रों का ही है. सिद्धांततः समग्र हड़ताल वांछनीय ही नहीं संभव भी है. शिक्षक को भयमुक्त हो चारण-प्रवृत्ति त्यागना होगा. उन्हें शिक्षक की गरिमा तथा शिक्षक होने के महत्व को आत्मसात करना होगा. सुरक्षा एकता तथा संघर्ष में है, बय तथा चाटुकारिता में नहीं. इतना लिखने के बाद प्राइमरी में पढ़ी वह कविता याद आती है -- यदि होता किन्नर नरेश.......... दिवि के शिक्षकों एक हो खोने को तुम्हारे पास मानसिक गुलामी है पाने को इतिहास रचने का खिताब. प्रोफेसनल "कर्तव्यबोध" से य़फवाईयूपी का तथा TINA(There is no alternative) तर्क के तहत सीबीसीयस का साथ देने वाले एक "क्रांतिकारी" प्रोफेसर ने मेरी इस बात को यूटोपिया की संज्ञा दी. जब तक कुछ घटित नहीं होता, यूटोपिया रहता है, होने के बाद इतिहास बन जाता है. आइये यूटोपिया को सच कर इतिहास रचें.
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