Friday, July 24, 2015

लल्ला पुराण 169 (फुटनोट 41)

यह एक पोस्ट के कमेंट्स पर कमेंट है.
संदर्भ से काटकर दुष्प्रचार की इस पोस्ट परअंतिम कमेंट. सबको अपनी भाषा के संस्कार जाहिर करने का हक़ है. मैं बेबाक भाषा में बात करता हूं अशिष्ट या अश्लील नहीं. मूर्खता को मूर्खता या धूर्तता को धूर्तता, शासको के महिमामंडन को चारण प्रवृत्ति कहना, बेबाकी हो सकती है, अशलीलता नहीं. जिस  किसी ने मेरे प्रोफेसर होने पर आश्चर्य व्यक्त किया है मैं उनके आ्रश्चर्य का सहभागी हूं, जहां तिकड़म से शिक्षकों की  नियुक्तियों की तिजारत चलती हो, वहां मुझे नौकरी मिल जाना हैरत की ही बात है. मुझसे कोई कहता है कि मुझे देर से नौकरी मिली तो मैं कहता हूंॆ सवाल उल्टा है मिल कैसे गयी. बाकी मैं कैसा शिक्षक हूं यह तो मेरे स्टूडेंट्स ही बतायेंगे, कहीं सौभाग्य से किसी से मिल जाओगे तो इसी बात पर सर पर बैठा लेंगे कि ईश मिश्र को जानते हो. इलाहाबाद में भी 2 दर्जन के आस-पास स्टूडेंट्स एक क्लास बन गया है. इलाहाबाद यात्रा में 5-6 घंटे उनके लिए आरक्षित रखता हूं.

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