बंदा नवाज़ की है नूतन अभिलाषा
इंसाफ की होगी अब नई परिभाषा
होगा जो भक्तिभाव में अत्यंत दक्ष
बनेगा वही वक्त का न्यायाध्यक्ष
होगी भक्तिभाव की यही निशानी
कर सके जो पानी को दूध दूध को पानी
अायेगा तब क़ाज़ी-ए-वक़्त का फैसला
जेल भेजा जायेगा लाशों का क़ाफिला
चलेगा अदालत में तब ये मुक़दमा
क़ातिल को लगा था जहमतों से सदमा
क्यों था लाश की देह में इतना दम
ख़ंजर पे अा गया जिससे थोड़ा ख़म
रहा है इंसाफ का सदा यही तक़ाज़ा
दोषी ही भरता रहा है ख़ामियाजा
होगी तब लाशों के वारिशों की तलाश
क़ाज़ी-ए-वक़्त होते नहीं कभी हताश
पूरी होगी जैसे ही जिसके वारिश की तलाश
मुक्त कर दी जायेगी उसी दिन वो लाश
महामहिम का अंतिम फैसला
जारी रहेगा इंसाफ का सिलसिला
महामहिम के महामहिम की भी यही चाह
चिकनी होनी चाहिये इंसाफ की राह
(ईमिः18.02.2014)
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-02-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1894 पर दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
sundar
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteशुक्रिया
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