Sunday, February 15, 2015

भिंची मुट्ठी

दुनिया को मुट्ठी में करने का भरता वो दंभ
वहम-ओ-गुमां में होता जो उन्मत्त मदांध
कर नहीं सकता जुर्रत दुनिया मुट्ठी में बंद करने की
बंधी है मुट्ठी दुहराने को संकल्प इसकी सूरत बदलने की
लहरा रहे हैं हाथ लगाने को नारा इंक़िलाब का
आप को लगा हौसला अश्वमेध के ख़ाब का
बंधी है मुट्ठी करने को ज़ंग-ए-आज़ादी का ऐलान
लिखने को मानवता का एक मानवीय विधान
उठे हैं हाथ करने को मानव-मुक्ति का इजहार
नहीं मिलेगे इनमें चक्रवर्तीत्व से नीच विचार
भिंची है मुट्ठी करने को नाइंसाफी पर आघात
न कि दिखाने को विश्वविजय के बेहूदे जज़्बात
इरादे हैं बुलंद बनाने का एक ऐसा सुंदर जहान
शोषण दमन हों जहां गधे की सींग के समान
(ईमिः15.02.2015)

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