H.k. Singh देश के झूठे बादों क्या? मंहगाई का क्या? काले धन का क्या हु्अा? अंबानी का नाम सर्वोपरि है अौकात है 56 इंच के सीने के मदारी की उसकी गर्दन पर हाथ डालने की? जिसका हाथ उसकी पीठ पर है उस पर हाथ डाले. हर काला बाजारी देशद्रोही है, उनके हाथ जिनकी पीठ पर हों उन्हें क्या कहियेगा? बेशर्मी की शायद कोई हद नहीं होती. अाप से क्रांति की उम्मीद नहीं है, वह भी भाजपा की ही तरह शासक वर्ग की ही पार्टी है, उसने फासीवादी क़ॉरपोरेटी अभियान के अहंकार को 1 झटका दिया है.
H.k. Singh मेरा सवाल बंदानवाज़ की लफ्फाजी अौर उसे मान लेने वाले पढ़े-लिखे लोगों की जहालत का है. 100 दिन में हर हिंदुस्तानी के खाते में 15 लाख जमा होना था, जब नाम उनके अाका का अाया तो साप सूंग गया. मेरा सवाल प्रधानमंत्री पद की गरिमा का है यदि प्रधानमंत्री की पीठ पर किसी देशद्रोही काला बाजारिये का हाथ हो. मेरा सवाल 10 लाख के ड्रेस के लिये मुल्क की नीलामी का है. मुल्क मोदी-अंबानी का नहीं, हमारा अाप का है. मुल्क बडा है मंदिर से. सवाल अध्यादेशों के जरिये किसानों-व्यापारियों की बेदखली का है.
H.k. Singh मैंने सघ से ही शुरुअात किया था 17-18 की उम्र में इलाहाबाद अभाविप का प्रकाशन मंत्री था, रामाधीन जी से पूछ लीजिये. अफवाह-जन्य इतिहास के जहालतपूर्ण बौद्धिकों का श्रोता अौर शिविरों में बाल स्वयसेवकों का शोषण भी देख चुका हू. शाखा में नेता में अटूट दिमागबंद अास्था के बहुत गीत गये हैं. भक्ति भाव त्यागकर दिमाग का इस्तेमाल करेंगे तो अाप भी इस जनद्रोही-राष्ट्रद्रोही, अधोगामी कपटजाल से मुक्त हो सकेगे.
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