अरे यार, कोई कुश्ती तो हो नहीं रही है, ये तो तुकबंदी हो गयी ईश्वर जी पर तो जो भी कमेंट लगता है अौर लोग भी पढ़ें तो उसे पोस्ट भी (3 "भी" अा गये वाक्य पूरा होने के पहले) कर देता हूं, बिना किसी दुर्भावना के. तुम मेरे प्रतिद्वंदी तो हो नहीं मित्र हो. शब्दों के भिड़ंत व्यक्तियों के भिड़ंत तो होते नहीं. कोई अंतिम सत्य होता नहीं, शब्दों के भिड़ंत से ही सापेक्ष सत्य तक पहुंचा जा सकता है. मैं कभी भी वाद-विवाद के परिप्रेक्ष्य से विमर्श में साझीदारी नहीं करता, बल्कि सीखने-सिखाने के लिये, ज्यादा सीखने अौर नये लोगगों को विचारों के जरिये समाज को समझने के लिये. जानने के लिये अौर तुम तो मेररे लिये खास रुचि अौर उत्सुक. ता के सुपात्र हो. कुछ अौर कर रहा था कि मन में अाया यह (पोस्ट) कविता नहीं बल्कि मीडियाकर किस्म का पंपलेट लगा, अभी इसे अौर तुम्हारी पोस्ट से डिलीट करने के ही लिये ही फेस्बुक खोला तब तक तुम्हारा कमेंट दिखा. यार अदावत ईश्वर की अवधारणा से है, तुमसे थोड़े हीं. तुम तो प्यारे इंसान हो, अास्तिक हुये तो क्या? हा हा
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