Saturday, February 28, 2015

क्षणिकाएं 42 (631-640)

631
जाम छ्लकता रहा
मन मचलता रहा
हम पीते रहे
साथ जीते रहे
रात ढलती रही
प्यास बढ़ती रही
साथ चलते रहे
अागे बढ़ते रहे
(ईमिः04.02.2015)
632
हिंदू राष्ट्र नहीं हिंदु-विश्व बनेगा
अब फिर से दुनियां में वैदिक विज्ञान चलेगा
जनेगी  40-40 बेटे हर हिंदू अौरत
बदल जायेगी दुनिया की अाबादी की सूरत
ये पराक्रमी लडके छेड़ेंगे लवजेहाद
विधर्मियों का गुरूर करेंगे बरबाद
बढ़ती जायेगी हिंदु अाबादी
होगी तब ढंग से म्लेच्छ धर्मों की बरबादी
कहता है ये भागवतीय विज्ञान
महानता का संकल्प मागता बलिदान
होती है हिंदू नारी देवी समान
खुशी से करे प्रजनन में इक ज़िंदगी कुर्बान
राज करेगी तब दुनियां पर विश्व हिंदू परिषद
साध्वी साधुओं के प्रवचन से गूंजेगी विश्व संसद
बजेगा दुनियां में रामजादों का डंका
हर हरामजादे पर की जायेगी शंका
बंद हो जायेगा वैलेंटाइन डे का सिलसिला
प्रेम के पाप को कुचल देगा स्वयंसेवकों का काफिला
रहेगा साथ में एक हिडेन एजेंडा
घटेगी नहीं समलैंगिकों की संख्या
देते रहेंगे प्रचारक बालस्वयंसेवकों को दीक्षा
पहुंचने को विश्व-संसद होगी देनी अग्निपरीक्षा
कापिटॉल हिल में लगेगी शाखा
पेंटागन पर फहरेगा केशरिया पताका
नष्ट हो जायेंगे सब अंतरिक्ष यान
अंतरिक्ष यात्रा करायेंगे पुष्पक विमान
नारद पहुंचायेंगे देवलोक में खबर
करेंगे स्वागत देवता पुष्प बरसा कर
पंडित हवन कर बढ़ायेंगे पुण्य-प्रताप
ज्ञान-विज्ञान स्वाहा के मंत्र का करेंगे जाप
अोम नमो नमो स्वाहा
खेती-बाड़ी स्वाहा
किसान मजदूर स्वाहा
जल-जंगल स्वाहा
अादिवासी तो बार बार स्वाहा
स्वाहा स्वाहा स्वाहा स्वाहा
स्वाहा स्वाहा स्वाहा स्वाहा
बोलो श्री अडानी-अंबानी महराज की जय
बोलो श्री श्री वालमार्ट महराज की जय
नहीं बोलेगा जो श्री श्रीयों की जय
हिंदुविश्व में निश्चित है उसकी क्षय
नहीं सुनेगा जो सत्यनारायण की कथा
झेलना पढ़ेगा कन्या कलावती की व्यथा.
(ईमिः05.02.2015)
633
क़ाबिलियत-ए-सियासतदान
दोगलापन इस जम्हूरियत की असली पहचान है
50 साल पहले का दुष्यंत कुमार का बयान है
वो न समझेगा सियात ज़िंदा जिसमें इंसान है
झूठ-ओ-फरेब ही क़ाबिलियत-ए-सियासतदान है
लूटता है धरती अौर करता वायदा-ए-ओसमान है
कहता है लायेगा विदेशों में पड़ा कालाधन
खुशहाली के छलावे में फंस जाता अामजन
अंबानी का नाम अाते ही बंद हुई मोदी की जुबान
काले धन को बताया चुनावी जुमले की हवाई उड़ान
लूटते रहेंगे मिलकर सब मक्कार मुल्क तब तक
भक्तिभाव से अावाम मुक्त होता नहीं जब तक
होगा ही खत्म भ्रम एक-न-एक दिन अामजन का
करेगा तब तलब वो सही सही हिसाब कालाधन का
समझेगा जब हक़ीक़त सरकार-ओ-अडानी के साथ की
तोड़ देगा साजिश सत्ता की पीठ पर अंबानी के हाथ की.
(ईमिः15.02.2015)
634
दुनिया को मुट्ठी में करने का भरता वो दंभ
वहम-ओ-गुमां में होता जो उन्मत्त मदांध
कर नहीं सकता जुर्रत दुनिया मुट्ठी में बंद करने की
बंधी है मुट्ठी दुहराने को संकल्प इसकी सूरत बदलने की
लहरा रहे हैं हाथ लगाने को नारा इंक़िलाब का
आप को लगा हौसला अश्वमेध के ख़ाब का
बंधी है मुट्ठी करने को ज़ंग-ए-आज़ादी का ऐलान
लिखने को मानवता का एक मानवीय विधान
उठे हैं हाथ करने को मानव-मुक्ति का इजहार
नहीं मिलेगे इनमें चक्रवर्तीत्व से नीच विचार
भिंची है मुट्ठी करने को नाइंसाफी पर आघात
न कि दिखाने को विश्वविजय के बेहूदे जज़्बात
इरादे हैं बुलंद बनाने का एक ऐसा सुंदर जहान
शोषण दमन हों जहां गधे की सींग के समान
(ईमिः15.02.2015)
635
कहा था होगी जीत तुम्हारी समर्थन से आवाम के
जीतते ही बदल गये बोले हुई कृपा तुम पर राम की
लेनी थी शपथ तुमको देश के संविधान की
खाई तुमने कसम मगर ईश्वर के नाम की
(ईमिः15.02.2015)
636
सियासत तरह तरह के कुत्ते पालती हैं
उनके आगे शाही सपनों के टुकड़े डालती है
सब मिल दुम हिलाते हैं बॉस को देखकर
बड़े टुकड़े के लिये गुर्राते हैं इक-दूजे पर
झुंड में अजनबी पर बांझ से झपट पड़ते हैं
पत्थर उठाते ही दुम दबाकर भाग लेते हैं
इसीलिये मुझे बॉस से उतना नहीं
जितना उसके कुत्तों से डर लगता है
जो उसकी खुशामदी में बेबात भौंकते है
अपनी ही जमात को काटने दौड़ते हैं
मालिक की महिमा में मिमियाते हैं
विषय न हुआ तो पुराण बांचते हैं
तन जाते हैं पाते ही कुर्सी की पुचकार
दुम हिलाते हैं  देखते ही रोटी का अाकार
रथ के नीचे चलते हुये करते ऐलान
रथ के गतिविज्ञान की वही  हैं जान
कहते ये खुद को वफादार सजग प्रहरी प्रशासन का
इन्ही की रोशनी से जलता ज़ीरो-पॉवर बल्ब अनुशासन का
इनकी प्यार-पुचकार में भी14 न सही 4 इंजेक्शनों का डर होता है
मुझे बॉस से अधिक बॉस के कुत्तों से डर लगता है
(ईमिः17.02.2015)
637
ज़ुल्मतों के दौर में धधकते हैं दिलों में ज्वालामुखी
ख़ाक़ कर देते हैं  तख़्त-ओ-ताज़ फूटते हैं जब
(ईमिः17.02.2015)
638
इंसाफ की नई परिभाषा
बंदा नवाज़ की है नूतन अभिलाषा
इंसाफ की होगी अब नई परिभाषा
होगा जो भक्तिभाव में अत्यंत दक्ष
बनेगा वही वक्त का न्यायाध्यक्ष
होगी भक्तिभाव की यही निशानी
कर सके जो पानी को दूध दूध को पानी
अायेगा तब क़ाज़ी-ए-वक़्त का फैसला
जेल  भेजा जायेगा लाशों का क़ाफिला
चलेगा अदालत में तब ये मुक़दमा
क़ातिल को लगा था जहमतों से सदमा
क्यों था लाश की देह में इतना दम
ख़ंजर पे अा गया जिससे थोड़ा ख़म
रहा है इंसाफ का सदा यही तक़ाज़ा
दोषी ही भरता रहा है ख़ामियाजा
होगी तब लाशों के वारिशों की तलाश
क़ाज़ी-ए-वक़्त होते नहीं कभी हताश
पूरी होगी जैसे ही जिसके वारिश की तलाश
मुक्त कर दी जायेगी उसी दिन वो लाश
महामहिम का अंतिम फैसला
जारी रहेगा इंसाफ का सिलसिला
महामहिम के महामहिम की भी यही चाह
चिकनी होनी चाहिये इंसाफ की राह
(ईमिः18.02.2015)
639
कुछ खास बात है इन आंखों में
दिखती हैं अलग आज भी लाखों में
वैसा ही उमड़ता समंदर इनमें 35 साल बाद
देहाती संकोच में तब कहा नहीं यह बात.
(ईमिः28.02.2015)
640
गफलत तो बस इनका बहाना है
इरादा तो मन की मन माफिक उड़ान भरना  है
निगाहें शोख तो हैं मगर धारदार हैं
मिल्कियत के जिसके कई दावेदार
करती हैं ये सबके दावे तार तार

(ईमिः28.02.2015)

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