Sunday, August 31, 2014

डर डर कर नहीं जी जाती ज़िंदगी

डर डर कर नहीं जियी जाती ज़िंदगी
डर डर कर नहीं जियी जाती ज़िंदगी
डर में जीने वाले लोग
जीने मे मंद गति से मरते हैं
धीरे धीरे बार बार लगातार
किसी पुरानी रुमानी फिल्म के निराश नायक की तरह.
नामुमकिन की ही तरह
डर भी एक सैद्धांतिक अवधारणा है
शासन का मूलमंत्र है
शासक की शासित के शोषण की साधना है
जब से आया पूंजी की दुनिया में भूमंडलीकरण का दौर
डर बन गया आवारा पूंजी का स्थायी ठौर
मौत का ही नहीं मौत के बाद का भी डर दिखाया जाता
 जीवन बंद हो जाता है बीमाओं के निगमों में
 मौत के एकमात्र अंतिम सत्य है
अनिश्चित अौर निराकार
अनिश्चित अौर अमूर्त सच्चाई का कैसा डर
जिस पर नहीं जोर अपना
उसकी क्योंकर करें फिकर
 ज़िंदगी  एक निश्चित सच्चाई है कयानात की
इंसानी रिश्तों के खूबसूरत बयानात की
मक्सद है जीना इक खूबसूरत ज़िदगी
जी जा सकती है जो हो निडर
डर डर कर जियी नहीं जाती ज़िंदगी
खिंचती है वह मौत के इंजार में.
(ईमिः31.08.2014)


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