Wednesday, August 6, 2014

सियासत 1

धर्मवीर शर्मा &@Ashutosh Yadav: जिसका भी अस्तित्व है उसका अंत निश्चित है, कुछ लोग इस अंत को ज्यादा दिन टाल जाते हैं. यहां के जनमानस की समृति बहुत छोटी है, कभी भी कुछ भी हो सकता है. मोदी जी पहुचते ही बाप की जागूीर समझ देश बेचना शुरू कर दिए और 5 साल में उपने अगले उत्तराधिकारी को बेचने के लिए कुछ छोड़ेंगे ही नहीं. मुलायम और मायावती भी वही करेंगे. सांप्रदायिकता के जहर का काट जातीयता का जहर नहीं है, जनवादी जनचेतना है. सामाजिक-आर्थिक विकास की जनोन्मुख दृष्टि और किसी अग3गामी नीति-कार्यक्रम के अभाव में वैचारिक दिवालिएपन के शिकार,  दोनों ही जीववौज्ञानिक दुर्घना की अस्मिता के दुराग्रहों पूर्वाग्रहों के आधार पर व्यक्तिपूजा और उंमादी भावुकता के जरिए समाज में अशांति फैलाते हैं और लोगों का ध्यान बंटाकर बिनिवेश के नाम पर देश बेचते हैं. दोनों एक ही थैले के चट्टे बट्टे हैं. सांप्रदायिक फासीवाद और दुराचार से निपटने के लिए आमजन की विवेकसम्मत जनवादी लामबंदी की जरूरत है. आइए अपनी क्षमता के अनुसार जनवादी जनचेतना के विस्तार में हर शब्द और कर्म से अपना यागदान करते रहें. जनता जागेगी ही और कारपोरेटी शासन का अंत करेगी ही, आइए गति को त्वरण दें.

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