Wednesday, August 13, 2014

लल्ला पुराण 167

Chandra Bhushan Mishra मेरे मन की वे भी बाते लोग जान लेते हैं,जो मैं भी नहीं जानता. हा हा.जो इंसान दुनिया से मोहब्बत करता हो वह किसीके भी इश्क़ क़ा मुखालिफ कैसे हो सकता है? हाँ,सम्बंधो में जनतांत्रिक पारस्परिकता और आज़ादी का हिमायती होने केनाते इश्क़ में मल्कियत-भाव के खिलाफ हूँ,परिवार में भी.  जनतंत्र मतदान तक नहीं सीमित है, एक समग्र जीवन दर्शन है जिसे आत्मसात कर इंसान समता और  समानुभूति के अद्भुत आनंद के अनुभूति कर सकता है.शायरी इश्क़ तक नहीं सीमित होती.

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