Tuesday, August 19, 2014

दंगा तथा मतदान


जब भी करता हूँ पड़ताल कुछ इंसानो की हैवानियत की
दिल का ज़ख्म लहू बन उतर आता है आंखों में
ज़ख़्म के आंशुओं से धुले हमीदा के चेहरे पर
शुक्र के भी भाव थे अपने ज़ालिमो के लिये
कर दिया सब कुछ खाक पर जान बक्श दी जो
याद आयी 2002 में ज़िंदगी की भीख मांगती
गुजरात की परिभाषा बन गयी इरफान की तस्वीर
जब भी करता हूँ  पड़ताल फिरकापरस्त हैवानियत की
याद आती है गोरख की वह कविता
करती है जो बात
बड़े दंगों से मतदान  की अच्छी फसल की
(ईमि/21.08.2014)

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