Friday, August 15, 2014

बुजुर्गीयत की जवानी

बुजुर्गीयत की जवानी
युवा उमंगों की रूमानी अठखेलिओं में, 
बुड्ढ़े भी लेते हैं रस बन दर्शक और श्रोता
मगर आती नहीं कभी यह बात मन में
 काश मैं भी आज तुमसा जवान होता
होती है जवानी लबालब सर्जक ऊर्जा से
 बुजुर्गीयत की जवानी का है अलग मजा
रस्क है अपने चाँद-ओ- सफ़ेद दाढ़ी से
रह नहीं सकती थी जो काली सदा 
चाहत है बस एक ही इस अदना ज़िंदगी में
मिले न कभी किसी को बुढापे की सज़ा
[इमि/१५ अगस्त २०१४]

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