Saturday, August 23, 2014

तन्हा शामें

तन्हा शामें अौर एक छलकता हुअा जाम
याद-ओ-ख़याल करते हमप्यालों का काम
सोचते हैं कुफ्र बाख़याल-ए-अंज़ाम
करना है हर शाख के उल्लू का काम तमाम
मिटाना ही है धरती से ज़र का निज़ाम.
(हाहा ये तो शायरी सी हो गयी)
(ईमिः24.द8.2014)

2 comments:

  1. उल्लू का कुछ भी नहीं बिगाड़ पाओगे
    शाख भी काट काट कर अगर गिराओगे

    :)

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  2. होगी ही एक-न-एक दिन हर एक शाख के एक-एक उल्लू की शिनाख़्त
    किया जायेगा बर्बादी-ए-गुलिस्ताँ के एक-एक हिसाब की दरियाफ्त

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