Friday, August 15, 2014

क्षणिकाएं 29 (501-512)

क्षणिकाएं(511-13)
501
आ्रयेगी ही अमन-ओ-चैन की ईद कभी-न-कभी
कहीं नहीं होगा मातम मनायेंगे खुशियां सभी.
(ईमिः29.07.2014)
502
एकतरफा नहीं होता कभी कोई प्यार
हो नहीं पाता कभी कभी इश्क़-ए-इज़हार
(ईमिः20.07.2014)
503
बन गयी है रवायत सर झुकाकर रहने की
सर की हां में हां मिलाकर अपनी बात कहने की
सर की बात सदा प्रतिध्वनित करने की
यही है मूलमंत्र छोटे सर से शुरुआत करने की
भूल जाते हैं जो अभागे हेकड़ी में यह मूलमंत्र
दूर ही रखता है उन्हें यह त्रिशंक्व ज्ञानतंत्र
झुकाकर सर सर भी मिलाते हैं हां में हां
बड़े सर होते हैं जब भी कभी वहां
बड़े सर भी रहते हैं झुकाकर सर
मिलते हैं जब कभी और बड़े सर
चलता है सिलसिला सर-सरों का
सबसे बड़े और छोटे-बड़े बड़ों का
नहीं समझ पाता यह साक्षात बात
समकोण त्रिभुजों का शंकु है कयानात
(ईमिः29.07.2014)
504
एक तरफा चाहत का है ये शुकून-ए- मरम
पाने की न तमन्ना थी तो खोने का क्या ग़म
दरअसल यह प्यार नहीं, है महज सम्मोहन
सबका होता है कभी-न-कभी कोई मनमोहन
(ईमिः29.07.2014)
505
जिन्ना-सावरकर भाई मौसेरे
मौदूदी-गोलवलकर जुड़वे
अंग्रेजों का था सर पर हाथ
निकले देश तोड़ने साथ
खत्म हुआ जब अंग्रेजी राज
अमरीका बन गया इनका बाप
अंग्रेजों का था जैसा संदेश
एक से बन गये तीन देश
छोड़ेंगे नहीं ये कुछ भी शेष
बन गया भारत नव-उपनिवेश
(ईमिः29.07.2014)
506
हो सकता है सम्मोहन कभी किसी की किसी खास बात से
प्यार मगर उगता है दिलो-दिमाग के आपसी जज़बात से
करता है कोई जब सम्मोहित होता ही है मनमोहन
प्यार की पारस्परिकता पर खरा नहीं उतरता सम्मोहन
(ईमिः29.07.2014)
507
क्यों होती है इंसान में
इतनी कमनिगाही
और इतनी छोटी याददाश्त
कैसे भूल जाता है वह इतनी जल्दी
नस्ल-ए-आदम के लहू का दरिया
और किनारे से जाते साफ दिखते
कातिल के पैरों के निशान
स्वागत करता है
ज़ुल्म के पुनरावृत्ति की
नहीं करता सिर्फ बर्दाश्त
क्यों कि
इतिहास कभी दुहराता नहीं खुद को
प्रतिध्वनित होता है
पुराने वायदों की
नयी पैकिंग-व्रैंडिंग करता है
फंसा लेता है फिर मायाजाल में
और फंसता है इंसान जान-बूझकर
गवाह बनता है
इंसानी जज़्बातों के नये कब्रगाह का
और पीड़ित भी बन जाता है सूत्रधार
मानवता के रक्तपात का
क्यों होती है इंसान में
इतनी कमनिगाही
और इतनी छोटी याददाश्त
(ईमिः 04.08. 2014)
508
मत कहो कि यह दिनेश का हनुमान है
सीधे-सीधे यह रामायण का अपमान है
करोगे के अगर लैपटॉप घोटाले की बात
होगी यह अराजक तत्वों की खुराफात
करोगे अगर ओबीसी विस्तार की बात
घायल होगे अंतर्ध्वनि के जज़्बात
(ईमिः05.08.2014)
509
थे जो हिमायती हिटलर के
बन गये हैं अब बिनोबा
गैस चैंबर को चाहिए अब
भूदान की आब-ओ-हवा
(ईमिः05.08.2014)
510
खोजते हैं जो हर जुल्फ में जलवा-ए-आशिकी
महरूम रहते हैं शकून-ओ-खलूस-ए- मुहब्बत से

नाग बन जाते हैं ऐसे दिलफेक नाकाम आशिक
जोड़ी जमेगी खूब इनकी साथ पहाड़ी नागिन के

बददिमाग-ओ-बदमिज़ाज़ होते हैं ऐसे आशिक
जुल्फों में खोजते हैं जो माशूक की सख्सियत

कुंद कर देती है नैसर्गिक प्रवृत्ति विवेक इनका
दरकिनार कर दिमाग वापस जाते् पशुकुल में

समझते हैं जो महबूब को संग-ए-इबादत
होश ठिकाने लायेगी वही पहाड़ी नागिन ही
(ईमिः07.08.2014)
511
अभी तो ये अंगड़ाई है
आगे गहरी खाई है
अच्छे दिन में केवल अच्छी बाते
नहीं चलेंगी जॉकी-कार्टूनी खुराफातें
करत हों चाहे चोरी या दलाली में मुंह काला
आखिर आवाम ने बनाया है इन्हें वज़ीर-ए-आला
हैं गर सचमुच के अच्छे दिन के अरमान
करनी ही होगी आज़ादी कुर्बान
सोच समझ कर ज़ुबान खोलो
जब भी बोलो जयभारत-जयमोदी बोलो
चाह्ते हैं गर रखना लब आज़ाद
आइये मिलकर बोलें इंक़िलाब ज़िंदाबाद.
(ईमिः15 अगस्त 2014)
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512
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अभी तो ये अंगड़ाई है
आगे गहरी खाई है
अच्छे दिन में केवल अच्छी बातेेेे
नहीं चलेंगी जॉकी-कार्टूनी खुराफातें
करत हों चाहे चोरी या दलाली में मुंह काला
आखिर आवाम ने बनाया है इन्हें वज़ीर-ए-आला
हैं गर सचमुच के अच्छे दिन के अरमान
करनी ही होगी आज़ादी कुर्बान
सोच समझ कर ज़ुबान खोलो
जब भी बोलो जयभारत-जयमोदी बोलो
चाह्ते हैं गर रखना लब आज़ाद
आइये मिलकर बोलें इंक़िलाब ज़िंदाबाद.
(ईमिः15 अगस्त 2014)

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