Saturday, August 3, 2013

नहीं है समानता कोइ मात्रात्मक भाव


नहीं है समानता कोई मात्रात्मक भाव
होता है इंसान का गुणात्मक स्वभाव
कहती हैं होती नहीं उंगलियां बराबर सभी
छोटे-बड़े आकार से तय नहीं होतीमहत्ता कभी
हाथ की सबसे छोटी उंगली है अंगूठा
द्रोण ने लेकिन एकलव्य का अंगूठा ही काटा
होता नहीं कोइ भी काम बिना किसी हुनर के
होता विकसित हुनर समाजीकरण के असर से
न हजामत करता डाक्टर न डाक्टरी हज्जाम
रोटी सबको चाहिए हैं सबके अलग काम
सच है दो कितना भी पानी और खाद
बरगद नहीं बन सकती काजू की झाड
छोटे आकार से घटती नहीं काजू की महत्ता
नहीं होती लम्बाई से साबित बरगद की सत्ता
बरगद देता था छाँव पैदल पथिक को
त्रिप्त करता काजू फलों के रसिक को
सबको मिले रोटी सबको मिले काम
नहीं चाहिए माया न ही कोइ राम
सबको मिले समान इंसानी सम्मान
यही है कार्ल मार्क्स का असली अरमान
दिखता है जिन्हें होता असफल मार्क्सवाद
काले चश्में से पढते हैं वे सारे संवाद
द्वंद्वात्मक एकता है इतिहास का नियम
तथ्यों-तर्कों से परखता है हकीकत का वजन
सास्वत है इतिहास में केवल परिवर्तन
क्रमिक मात्रात्मक परिवर्तन होता है निरंतर
होकर परिपक्व जो बनते गुणात्मक
जब तक जारी है मेहनतकश का संघर्ष
कायम रहेगा दुनिया में मार्क्सवादी विमर्श.
[ईमि/०३.०८.२०१३]

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