अंशुमान जी, आपने पढ़ा है क्या गीता? बटोही जी कवी का अहंकार नहीं स्वाभिमान होता है. ज़रा बताएं इसमें कुतर्क क्या है? यह अंध-भक्ति के कुतर्क को जरूर चोट पहुंचाता है. ज़रा बताइये गीता का कौन हिस्सा ज्ञान का स्रोत है? आत्मा के अजर मर होने और एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रवेश के आद्श्यात्मिक बकवास उसके ओपहले पैथागोरदस और प्लेटो ने भी किया है. प्लेटो का आदर्श राज्य वर्णाश्रम व्यवस्था को ही दर्पण दिखाता है. पूरी महाभारत में गीता ही है जिसें एक चरित्र अपने को खुदा और सर्वशक्तिमान घोषित करता है. मौर्य काल तक वह चरित्र भगवान का अवतार तो छोडिये आर्य नायक भी नहीं है. कौटिल्य विजिगीषु को अभियांज पर निकल;ने के पहले देवताओं (वैदिक) और दानवों की उपासना करने की सलाह देते हैं और कृष्ण और कंस को दानवों कीश्रेणी में एक साथ रखते हैं. मेगास्थनीज उन्हें सूरसेन क्षेत्र (मथुरा) का किम्वदंतियों स्थानीय नायक बताता है. वह चरित्र गीता में अपने को श्रृष्टि का सर्वेसर्वा बताता है, जिसके मुह में पूरी दुनिया सामई है. उसका सन्देश है सोचो मत मारो. धर्म-अधर्म सब सापेक्ष होता है. गीता वर्णाश्रमी आध्यात्म का ग्रन्थ है जिसे बिमना पढ़े लोग सभी ज्ञान का स्रोत मान लेते हैं. "त्वमादिदेवः पुरुषः पुराणः ............" यह सरल मन धर्मभीरू मन होता है जो बिना-सोचे समझे आध्यात्म का फरेब कबूल कर लेता है.
Raghavendra Das मित्र एक कट्टर कर्मकान्डी ब्राह्मण परिवार में पलने-बढ़ने के चलते बचपन में भक्ति-भाव से और बाद में समालोचक भाव से कई बार पढ़ चुका हूं. मुझे अहंकारी बताने की बजाय या गीता को परम-आध्यात्म बताने की बजयस्य उसकी विषयवस्तु पर बात करे तो स्वस्थ विमर्श हो सकता है. आत्मा के अजर अमर होने वाली और मृत्यु के बाद एक शरीर से दूसरे शरीर मे प्रवेश की बात पाइथागोरस और प्लेटो भी लिख चुके हैं आध्यात्म अपने आप में फरेब है. गीता का कौन सा ऐसा ज्ञान है जो सरवोपरी है? बिना सोचे कर्म करना? संघियों ने यह ज्ञान लगता है गीता से ही लिया है.
Chandan Mishra I don't take pride or feel ashamed about where I was born, that's a biological accident. Yes I did read Gita and Ramcharitmanas in the childhood with my grandfather, having bull (or any other) shit in mouth is not part of our culture. I read all the books with a positive critical outlook. It seems you started appreciating the book without reading otherwise instead of bull-shitting, you would have quoted lines which makes it a great book. If one speaks of religion critically you start pronouncing death of communism that your likes are doing for centuries,yet they are being haunted by the specter of communism even now and will continue doing that till they are wiped out by the forces history. Gita is not a book on Hinduism, the term was yet not coined till Arabs arrived. We don't bother about ego but only human dignity. We feel complemented when abused by obscurantists. You can kill one Nrendra Dobhalkar, not the rationality.
ऋग्वेद का बहुत ही सुन्दर अनुवाद गोविन्द मिश्र ने किया है, कृपया पढ़ लें उसमें कहीं ३३ कोटि के देवताओं का जिक्र नहीं है. ये सब उत्तरवैदिक प्रक्षेपण है. ऋग्वेद में अच्छी वर्षा एवं खाद्यान्नों औरहैं घोड़े जैसी शक्ति की प्रकृति के "देवताओं" से प्रार्थना है. नियमित अंतराल पर सोमरस (भांग) का जिक्र मिलता है. जो भी वेदों को सभी ज्ञान-विज्ञान का स्रोत मानते हैं उन्होंने वेद के पन्ने नहीं पलटा है. उस प्राचीन काल में हमारे अर्ध-खानाबदोश चरवाहे पूर्वज इतनी उत्कृष्ट रचना कर लेते थे यह गर्व की बात है, लेकिन ऐतिहासिक विकास उस चरण में वे सर्वग्य नहीं हो सकते थे. इतिहास की गाडी में रिवर्स गीयर नहीं होता. गीता तो बहुत बाद की रचना है. जिसके मूलमंत्र का पालन हमारे राजनेता करते हैं उनके बदले या तो सोनिया जी सोचती हैं या भागवत, वैसे ही जैसे अर्जुन बदले अपने को भगवान् बताने वाला कृष्ण करता है.
Raghavendra Das मित्र एक कट्टर कर्मकान्डी ब्राह्मण परिवार में पलने-बढ़ने के चलते बचपन में भक्ति-भाव से और बाद में समालोचक भाव से कई बार पढ़ चुका हूं. मुझे अहंकारी बताने की बजाय या गीता को परम-आध्यात्म बताने की बजयस्य उसकी विषयवस्तु पर बात करे तो स्वस्थ विमर्श हो सकता है. आत्मा के अजर अमर होने वाली और मृत्यु के बाद एक शरीर से दूसरे शरीर मे प्रवेश की बात पाइथागोरस और प्लेटो भी लिख चुके हैं आध्यात्म अपने आप में फरेब है. गीता का कौन सा ऐसा ज्ञान है जो सरवोपरी है? बिना सोचे कर्म करना? संघियों ने यह ज्ञान लगता है गीता से ही लिया है.
Chandan Mishra I don't take pride or feel ashamed about where I was born, that's a biological accident. Yes I did read Gita and Ramcharitmanas in the childhood with my grandfather, having bull (or any other) shit in mouth is not part of our culture. I read all the books with a positive critical outlook. It seems you started appreciating the book without reading otherwise instead of bull-shitting, you would have quoted lines which makes it a great book. If one speaks of religion critically you start pronouncing death of communism that your likes are doing for centuries,yet they are being haunted by the specter of communism even now and will continue doing that till they are wiped out by the forces history. Gita is not a book on Hinduism, the term was yet not coined till Arabs arrived. We don't bother about ego but only human dignity. We feel complemented when abused by obscurantists. You can kill one Nrendra Dobhalkar, not the rationality.
ऋग्वेद का बहुत ही सुन्दर अनुवाद गोविन्द मिश्र ने किया है, कृपया पढ़ लें उसमें कहीं ३३ कोटि के देवताओं का जिक्र नहीं है. ये सब उत्तरवैदिक प्रक्षेपण है. ऋग्वेद में अच्छी वर्षा एवं खाद्यान्नों औरहैं घोड़े जैसी शक्ति की प्रकृति के "देवताओं" से प्रार्थना है. नियमित अंतराल पर सोमरस (भांग) का जिक्र मिलता है. जो भी वेदों को सभी ज्ञान-विज्ञान का स्रोत मानते हैं उन्होंने वेद के पन्ने नहीं पलटा है. उस प्राचीन काल में हमारे अर्ध-खानाबदोश चरवाहे पूर्वज इतनी उत्कृष्ट रचना कर लेते थे यह गर्व की बात है, लेकिन ऐतिहासिक विकास उस चरण में वे सर्वग्य नहीं हो सकते थे. इतिहास की गाडी में रिवर्स गीयर नहीं होता. गीता तो बहुत बाद की रचना है. जिसके मूलमंत्र का पालन हमारे राजनेता करते हैं उनके बदले या तो सोनिया जी सोचती हैं या भागवत, वैसे ही जैसे अर्जुन बदले अपने को भगवान् बताने वाला कृष्ण करता है.
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