नहीं चाहिये सर्वहारा को पूंजीपति की प्रीत
उसे चाहिए वर्ग-संघर्ष में मेहनतकश की जीत
नहीं चाहिए उसे किसी वर्ग पर वर्चस्व
उसे चाहिए साझी धरती, साझा हो सर्वस्व
उत्पादन-साधनों पर हो हक की बराबरी
वसुधैव कुटुंब हो मुकम्मल इंसानी बिरादरी
न हो कोइ राजा न ही कोई रंक
अलग अलग प्रतिभा के हों सामान अंक
बुद्धि के बिना नहीं होता कोइ काम
मिले न किसी श्रम को अबौद्धिक श्रम का नाम
होता नहीं दर-असल छोटा-बड़ा कोई काम
इसलिए हो सभी कामों का एक-सा दाम
नैसर्गिक प्रतिभा है प्रकृति का अद्भुत उपहार
न हो इसके लिए निंदा न ही जय-जयकार
बराबरी के रिश्तों का सुख है अपरम्पार
दुनिया के मेहनतकश एक हों गूंजे यही पुकार
[ईमि/०३.०८.२०१३]
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