विभिन्न मंचों पर, मेरी टाइमलाइन और इनबाक्स में बधाइओ की भरमार हो गयी और मैं आभासी दुनिया में इतने अप्रयाषित शुभेच्छु पाकर मेरा दिल गार्डन-गार्डन हो गया. जिनकी बधाई पर अलग से आभार नहीं जता सका उनसे क्षमा-प्रार्थना के साथ हार्दिक आभार. वैसे मैं आज तक नहीं समझ पाया की मैंने जन्मदिन मनाना क्यों शुरू किया सिवाय इसके कि मयनोशी के लिए तिनके की आड़ का सहारा नहीं लेना पड़ता. आज का प्रबंध मेरी बेटी की हाथ में है, उम्मीद (डर) है कि आज के जश्न में आचमन का कार्यक्रम रद्द कर दिया जाएगा. "पराधीन सुख सपनेव नाहीं", इसीलिये मैं कल ही प्रेसक्लब चला गया था. एक साल के लेखा-जोखा के बाद, हर बार पीछे देखता हूँ और काबिल-ए-जश्न बात ढूँढता हूँ तो कुछ दिखता नहीं! दिल बहलाने को ख़याल आता है, "जीवन का कोइ जीवनेतर उद्देश्य नहीं होता. एक अच्छी ज़िंदगी जीना अपने आप एक सम्पूर्ण उद्देश्य है, बाकी अनचाहे परिणामों की तरह खुद-ब-खुद साथ चलते हैं.और कई बार अनचाहे परिणाम, लच्छित परिणामों से ज्यादा प्रासंगिक हो जाते हैं". मेरे दोस्तों की शिकायत रहती है कि मैं हर बात पर कहानी सुनाने लगता हा तो लेकिन पैदा होने और उसके जश्न पर तो कहानी जरूरी हो जाती है. मैंने पहली बार २६ साल के होने पर जन्म-दिन मनाया क्योंकि पहले मुझे सही सही अपना जन्म-दिन मालुम नहीं था. प्रमाण-पत्र में टंकित जन्म-तिथि प्रामाणिक नहीं है क्योंकि मैं प्राइमरी में काफी कूद-फांद करके जल्दी कर गया हेड मास्टर ने हाईस्कूल परीक्षा में रोका न जाऊं इस गणना से सनद बना दिया था. मेरे दादाजी पंचांग के विद्वान माने जाते थे इसलिए हम सब भाई-बहनों की जन्म कुण्डलियाँ बनी हैं,कुण्डली के अनुसार मेरा जन्म आषाढ़, कृष्ण-पक्ष दशमी संवत २०१२ को हुआ था. मेरे बचपन और किशोरावस्था में पूर्वी उत्तर-प्रदेश के गाँवों में जन्मदिन मानाने का प्रचालन नहीं था, इसलिए कभी विक्रम सदी को ईश्वी शदी में तबदीली की जरूरत नहीं महसूस हुई. १९७० के दशक में इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रावासों में भी ज्यादातर विद्यार्थी ग्रामीण पृष्ठभूमि के ही थे इसलिए वहां भी जन्मदिन मनाने पर जोर नहीं था. २४ जून १९८० में किसी शोध के सन्दर्भ में तीनमूर्ति लाइब्रेरी में १९५० के दशक के कुछ हिन्दी अखबारों की माइक्रोफिल्म देख रहा था. उन दिनों हिन्दी अखबारों में विक्रम सदी भी छपती थी, मन में आया अपना जन्मदिन भी क्यों न पता कर लूं. और फिर वापस आकर जन्म दिन पता होने का जश्न मनाया कुछ दोस्तों के साथ और फिर २६ जून को जे.एन.यु. के पार्थसारथी प्लेटो पर जमकर जश्न मनाया. तभी से हर साल २६ जून को दोस्तों के साथ "वैध" रूप से मयनोशी करता रहा. इस वर्ष मयनोशी का कार्यक्रम एक दिन पहले हो गया क्योंकि मेरी बेटी-दामाद ने सिर्फ परिवार के साथ जश्न का फिसला किया लेकिन फोन पर और फेसबु पर इतनी बधाइयां मिलीं की मैं खुशी से ओत-प्रोत हो गया.
सभी मित्रों का कोटिशः आभार, अपने हर तरह के विद्यार्थियों का खासकर.
सभी मित्रों का कोटिशः आभार, अपने हर तरह के विद्यार्थियों का खासकर.
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