मैं डीआईआर से छूटा था और मीसा में वारंट था. आपात काल की उत्तरार्ध में सरकार गिरफ्तारी पर उतना जोर नहीं दे रही थी जितना फासीवादी माहौल बनाकर निष्क्रिय ने की. सीपीआई के एक मित्र जो इलाहाबाद के एक सुरक्षित मोहल्ले राजापुर में रहता था मैं कई दिन-रात उसके साथ बिताता था. बहुत बच्छेई कवितायें लिखता था. बहस में एक दिन उसने कहा पुलिस को फोन करूँ. ऐसा आतंक कि मैं दुविधा में पद गया कि हो सकता है यह महज मजाक न हो और उसके यहाँ जाना बंद कर दिया. भूमिगत आश्रय तलाशते जब जनेवि पहुंचा वहां भी एक मित्र ने यही धमकी दी थी और वैसी ही दुविधा हुई थी, जो फिर कभी.
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