है ये चेहरे पर गम-ए-जहां की बेचैनी
समझना इसे घबराहट है सरासर गलतफहमी
इश्क गर हो जहां से
हमनवां मिलते हैं कहाँ कहाँ से
सच है कुछ नहीं मिलता खैरात में
लड़ के लेना पड़ता है हक और तबदीली हालात में
नहीं है मजबूरी जीने की ज़िंदगी निज चुनाव है
मत समझो इसे मुह छिपाना खुशियों से
बस खोखली उत्सवधर्मिता का अभाव है.
[ईमि/२३.०६.२०१३]
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