सोना भाता नहीं मुझको
आता है जो महज आभूषण के काम
लगता है इसी से उसका ऊंचा दाम
मुझे तो लुभाती है गीली मिट्टी
जिस पर हर घटना कुम्हार बन
कविता निकाल देती है
हो सकता है सोने के होने में न होना
साक्षात साश्वत है सुगंध मिट्टी की
मिलाना है मिट्टियों को दरिया के आर-पार
करो मजबू पकड़ पतवार पर
बिना डूबे पार करना है
उम्मीदों की यह दरिया
[ईमि/०३.०६.२०१३]
आता है जो महज आभूषण के काम
लगता है इसी से उसका ऊंचा दाम
मुझे तो लुभाती है गीली मिट्टी
जिस पर हर घटना कुम्हार बन
कविता निकाल देती है
हो सकता है सोने के होने में न होना
साक्षात साश्वत है सुगंध मिट्टी की
मिलाना है मिट्टियों को दरिया के आर-पार
करो मजबू पकड़ पतवार पर
बिना डूबे पार करना है
उम्मीदों की यह दरिया
[ईमि/०३.०६.२०१३]
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