धार्मिकता अपने आप में अवैज्ञानिक तो है लेकिन अपने आप में सांप्रदायिक नहीं है, क्योंकि सांप्रदायिकता धार्मिक नहीं धर्मोंमादी लामबंदी की राजनैतिक विचारधारा है। वैसे धार्मिकता में कट्टरपंथ की संभावनाएं होती ही हैं। हिंदी समाज हिंदू समाज नहीं, हिंदुत्व समाज बनता जा रहा है और हिंदुत्व ब्राह्मणवाद (वर्णाश्रमवाद) की ही राजनैतिक अभिव्यक्ति है। इस चिंताजनक समय में हिंदी के लेखकों से हिंदी समाज को पोंगापंथी बनने से बचाने की अपेक्षा है।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment