बहुत बहुत मुबारक। मेले से शीघ्र ही 'परसाई का मन' लेकर पढ़ने और समयांतर के लिए समीक्षा लिखने की कोशिश करूंगा।
यात्राओं में, प्रायः, परसाई जी का कोई संकलन ले जाता था, खासकर अपने गांव की यात्रा में। गांव से आते समय किसी हमउम्र लड़के को यह कह कर देकर आता था कि वह और लोगोंको भी पढ़ाए। हर बार किसी को कोई किताब देते हुए यही सोचता था कि अपने लिए फिर खरीद लूंगा, लेकिन पढ़ी हुई किताबं खरीदने की प्राथमिकता में मुश्किल से आती हैं।
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