Monday, February 12, 2024

शिक्षा और ज्ञान 346 (सामूहिकता)

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व्यक्तिवाद पूंजीवाद की आधारभूत प्रवृत्ति है और युग की विचारधारा। पूंजीवाद के पहले की सामूहिकता सामंती थी , जो हम लोगों को विरासत में मिली। सामंती सामूहिकता की विद्रूपताएं उतनी निष्ठुर व अमानवीय नहीं थीं, जितनी पूंजीवादी व्यक्तिवाद की विद्रूपताएं। इतिहास को पीछे, सामंती सामहिकता की तरप नहीं धकेला जा सकता और वह वांछनीय भी नहीं है। समाधान अतीत में महानता ढूंढ़ने में नहीं है, अतीत में महानता की तलाश, अनजाने में, भविष्य के विरुद्ध साजिश है। सामंती सामूहिकता की वापसी की नहीं, जरूरत एक नई समतामूलक जनतांत्रिक सामहिकता की है। समाजवाद में इसी तरह की सामूहिकता प्रतावित है। पूंजीवादी भोंपू के रूप में जब (1992) फुकूयामा ने इतिहास के अंत की अनैतिहासिक घोषणा की थी, मैंने सोसल साइंस प्रोबिंग में उसकी समीक्षा लिखा था, समय मिला तो शॉफ्ट कॉपी बनाकर शेयर करूंगा। इतिहास कभी खत्म नहीं होता, नही विचार खत्म होते, क्रांति-प्रतिक्रांति के दौर चलते रहते हैं। पुराने विचार नए विचारों को जन्म देते हैं, नए विचार अग्रगामी भी हो सकते हैं और अधोगामी भी। प्रकृति और दुनिया द्वद्वात्मक है और इसी द्वंद्वात्मकता की ऊर्जा से बीच-बीच में एकाध यू टर्न लेते हुए, इतिहास आगे बढ़ता रहता है, उसके इंजन में रिवर्स गीयर नहीं होता।

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