Thursday, February 15, 2024

रूसो

 बंद दरवाजे से वापस होकर रूसो दार्शनिक बन गया

बजाय करने के इंतजार दरवाजा खुलने का
वह निकल पड़ा खुले आसमान के नीचे
अनजान रास्तों से
अनजान अमूर्त मंजित की तलाश में
देखने को दीवारों और दरवाजों से आगे की दुनिया
वह पड़ाव-दर-पड़ाव चलता रहा
देखा उसने दीवार-दरवाजे से आगे की दुनिया
जो घिरी थी दीगर दीवारों और दरवाजों से
रास नहीं आई उसे यह नई दुनिया
उसी तरह जैसे उसे अपना न सकी थी उसे पुरानी दुनिया
बुद्ध की तरह तलाशता रहा
दुख-दर्द और पराधीनता से मुक्त दुनिया
उसे सर्वाधिक कष्टप्रद लगती थी पराधीनता
उसने एक ऐसी दुनिया का मॉडल पेश किया
जिसमें पराधीनता शब्द छूमंतर हो जाए
जिसमें राजा-प्रजा की विभाजक रेखा मिट जाए
सब उतने ही आजाद हो जाएं
जितने वे प्रकृति के साम्राज्य थे
तब वे अकेले थे अब अपने सामूहिक राज में
जिसमें किसी को भी पराधीनता का अधिकार न हो
पराधीनता अमानवीय है इसलिए वर्जित

9 comments:

  1. पराधीनता अमानवीय है इसलिए वर्जित है।
    बेहतरीन अभिव्यक्ति।
    सादर।
    -----
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. रूसो आज भी है शायद कहीं

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  3. व्वाहहहहहह
    सब उतने ही आजाद हो जाएं
    जितने वे प्रकृति के साम्राज्य थे
    वजनदार सोच
    आभार
    सादर

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  4. रूसो एवं बुद्ध !
    पराधीनता अमानवीय है इसलिए वर्जित
    बहुत सुंदर चिंतनपरक सृजन।

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