साथियों मैं तैश में अपनी अमर्यादित भाषा की टिप्पणियों को लिए मॉफी मांग चुका हूं, मार्क्सवाद मेरे लिए कैरियर का साधन नहीं, जीवन दर्शन है और अंतिम सांस तक रहेगा। मैं कॉ. स्टलिन के बारे में कुत्सित कुप्रचार का उतना ही विरोधी हूं जितना आप सब। साथी प्रांशु से सहमत हूं कि ख्रुश्चेव के झूठ पर इस पोस्ट पर स्टालिन काल की गलतियों पर अलग पोस्ट पर बहस करना चाहिए था। मैं आत्मालोचना के तौर पर ही लिखा था कि 33 सालों में सामाजिक चेतना के जनवादीकरण न होने पाने की ही बात कर रहा था कि उनके जाते ही प्रतिक्रांति की शुरुआत कैसे हो गयी? मैं स्टलिन पर कॉ माओ के विश्लेषण को सही मानता हूं। एक बार फिर मॉफी मांगता हूं, निजी आक्षेपों पर मुझे उसी भाषा में प्रतिक्रिया नहीं देना चाहिए था। 1852 में कम्युनिस्ट लीग के बिखराव और 1864 में प्रथम इंटरनेसनल के गठन के बीच के समय में प्रूदों के अनुयायी मार्क्स से भी यही सवाल कर रहे थे कि इस दौरान वे लेख लिखने के अलावा और क्या कर रहे थे? रूसी सोसल डेमोक्रेटिक पार्टी के सम्मेलन विदेशों में ही हुए। कॉ लेनिन मार्क्स की तर्ज पर क्रांतिकारी परिस्थितियों की अनिवार्यता पर बार बार जोर देते रहे। आज की जरूरत उन परिस्थियों के निर्माण की है। अमर्यादित भाषा वाले कमेंट इसलिए नहीं डिलीट किया कि इसका मतलब गलतियों को डिसओन करना होगा। मैं जिन दो साथियों को ब्लॉक किया उन्हें अनब्लॉक करता हूं। चलिए इस बहाने आत्मकथा का एक अंश लिखा गया।
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