Wednesday, January 3, 2018

लल्ला पुराण 172 (विमर्श)

चुंगी के सदस्यों से विनम्र आग्रह: मैं एक बासठियाया शिक्षक और लेखक हूं लेकिन सबसे पहले मीनवीय संवेदनाओं; भावनाओं; उद्वेगों और विवेक वाला साधारण इंसान। संयोग से जन्मना ब्राह्मण; आजमगढ़ी; इलाहाबादी; जेयनयूआइट हूं। कृपया मैं जो लिखूं उस पर सवाल तथा उसका खंडन-मंडन करें, जो न लिखूं उस पर नहीं। इस ग्रुप में कई सदस्य मेरा नाम देखते ही वाम वाम अभुआने लगते हैं। मैं फिलहाल किसी कम्युनिस्ट पार्टी में नहीं हूं, लेकिन प्रामाणिक नास्तिक और परिवर्तनकामी यानि वामपंथी हूं। वाम वाम अभुआने वाले चिरकुट लोग, मुझे लगता है वाम शब्द की ऐतिहासिक उत्पत्ति और विकास से अनभिज्ञ, हर बात पर वाम के भूत से प्रताड़ित हो जाते हैं और कई बार मैं भी तैश में यह भूलकर कि 42 साल पहले 20 का था उन्ही की भाषा में जवाब देकर पश्चाताप करता हूं। कई अमृतधारी चीकट, मेरे बुढ़ापे पर नशीहत देने लगते हैं, अरे भाई आप अगर आज 40 के हैं तो 22 साल बाद आप भी 62 के हो जाएंगे और आपके ही संस्कारों से सीख कर आपके पोते/पोतियां; नाती/नतनियां आपको भी बुड्ढा-बुड्ढा कह कर गरियाएगें। बुढ़ापे पर तरस खाने वालों को ब्लॉक कर देता हूं। अगर वाकई यह ग्रुप स्वस्थ विमर्श के लिए बना है, लफ्फाजी के लिए नहीं तो आजमगढ़ में आम की बागवानी की पोस्ट पर बंगाल के मछली संकट पर सवाल पूछ कर या निराधार निजी आक्षेप से विमर्श को विकृत न करें। बंगाल के मछली संकट पर बात करना हो तो उसके लिए अलग पोस्ट डालें उस पर मेरी जानकारी और रुचि होगी तो मैं भी उस पर शिरकत करूंगा। मेरी बात अगर बर्दाश्त के बाहर हो जाएं तो बता दें मैं बिना निकाले शालीनता से यह ग्रुप छोड़ दूंगा। मुझे उम्मीद है आप सब मेरे निवेदन पर गेभीरता से विचार कर मुझे उपकृत करेंगे।
साभार
ईश मिश्र

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