Wednesday, January 31, 2018

लल्ला पुराण 179 (ज्ञान, शिक्षा .. की भूमिका)

चुंगी के मित्रों,
यह ग्रुप इविवि के वरिष्ठ-कनिष्ठ सहपाठियों का है जिनमें ज्यादातर से परिचय फेसबुक का ही है, हम एक दूसरे को शब्दों से ही जानते हैं। विवि ज्ञानार्जन का केंद्र होता है, लेकिन कई मुद्दों पर शिक्षित अज्ञानी-कुज्ञानियों और अशिक्षित अज्ञानियों की अतार्किक राय एक सी होती है। मेरी हार्दिक इच्छा है कि हम ज्ञान और शिक्षा के अंतःसंबंधों और अंतःविरोधेों पर पूर्वाग्रह से मुक्त विमर्श करें। क्या शिक्षा और ज्ञान में समानुपाती संबंध है? विमर्श की शुरुआत मैं 'समकालीन तीसरी दुनिया' के सितंबर, 2016 अंक में छपे लेख से कर रहा हूं।

संदर्भ:
2016 में अगस्त में एक कार्यक्रम में इलाहाबाद जा रहा था, कार्यक्रम सरकारी (जीबी पंत संस्थान) था इसलिए फर्स्ट क्लास में जा रहा था। कूपे में बाकी तीन लोग आपस में परिचित थे। एक ने दूसरे से पूछा वह (नाम भूल रहा है, मैं परिचित तो नहीं थाआईएस में अच्छी रैंक आनेै पर काफी नाम हुआ था) अभी जेल में है या छूटा? पता चला भ्रष्टाचार में पकड़ा गया था। आदत के प्रतिकूल बिना टांग अड़ाए उनकी बातें सुनते सुनते और यह सोचते हुए कि शिक्षित तपके के क्रीम समझे जाने वाले ये नौकरशाह कितने मूर्ख होते हैं कि इतना भी नहीं जानते कि एक ही जिंदगी है जिसके लिए इफरात धन नहीं चाहिए और पूंजीवाद में महज पूंजीपति संचय कर सकता है, बाकी महज संचय की भ्रांति में रहते हैं।

विवि में एक साथी प्रोफेसर के चैंबर में हम अपने समय में ब्राह्मण-कायस्थ लॉबी की जाति आधारित गुटबाजी की यादें शेयर कर रहे थे। तभी वहां मौजूद कुछ युवा शिक्षकों ने बतायेै कि वह गुटबाजी और गहन हो गयी है। लगा कि कितने मूर्ख है ये पीयचडी की उपाधि और 'ज्ञान' बांटने के सालों के अनुभव के बाद इतना नहीं जानते कि व्यक्तित्व जन्म की जीववैज्ञानिक दुर्घना का नहीं, सामाजिक परिस्थितियों और समाजीकरण का परिणाम है, वरना मैं भी अभी तक पंजीरी खाकर कहीं भजन गा रहा होता। जन्म की अस्मितागक प्रवृत्तियों से ऊपर उठने को लक्षणा में बाभन से इंसान बनना कहा जाता है।

एकाध 'प्रयागराज' प्रोफेसरों से मिलने का सुअवसर प्राप्त हुआ, तरस आया, कितने अभागे हैं कि शिक्षक होने की महत्ता नहीं समझते। यह लेख इलाबाहाद की उस यात्रा के अनुभव के चलते लिखा गया। लंबा है, जब फुरसत मिले, पढ़ें और निर्मम समीक्षा करें जिससे यह महत्वपूर्ण विमर्श आगे बढ़ सके, भूलकर कि लेखक कौन है।

No comments:

Post a Comment