Thursday, January 25, 2018

लल्ला पुराण 176 (ईश्वर विमर्श 48)

Dinesh Pratap Rao Dixit मेरा शंकर पर कोई अध्ययन नहीं हैं। कुछ विद्वानों का मत है कि यहां के आदिवासियों के देवता थे जिसे वैदिक धर्म की शाखाओं ने आत्मसात कर लिया। एक समय शैव मतालंबियों की उल्लेखनीय मौजूदगी रही है। भारत की संस्कृतियों में सामासिकता की प्रवृत्ति रही है, अलगाव की नहीं। 1857 की किसान क्रांति से आतंकित अंग्रेज शासकों और उनके इतिहासकारों ने अपने निहित स्वार्थों के लिए धर्म के आधार यहां की सामासिक संस्कृति तोड़ने की साजिश रची, जिसके लिए उन्हें दोनों बड़े धार्मिक समुदायों में कारिंदे मिल गए। पहले राजाओं में लड़ाइयां होती थी, हिंदू-मुसलमान में नहीं, दोनों ही कुछ और होने के पहले इंसान हैं, वे कहां पैदा हो गए उसमें उनका कोई योगदान नहीं. भारतीय राजनैतिक चिंतन पढ़ाने के लिए अद्वैत पढ़ा हूं, लेकिन तब तक मैं पहले ही वैज्ञानिकता की सोच से ग्रस्त हो चुका था और माया से मुक्ति ही नहीं चाहता, हा हा, मानवता की मोह-माया ही तो जीवन की संजीवनी है।

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