Friday, January 5, 2018

लल्ला पुराण 174 (समाजवाद)

प्रिय चुंगीजन, मैंने समयांतर के मार्च-नवंबर के 9 अंकों पर समाजवाद के संक्षिप्त इतिहास  (1789-1917) पर एक लेखमाला लिखा है जिसे पुस्तक रूप देने के लिए फुटनोट और संदर्भ पर काम करने का समय नहीं निकाल पा रहा हूं, जल्दी निकालूंगा जो भी साथी पढ़कर राय दे सकें तो आभारी रहूंगा। हर रोज एक लेख शेयर करूंगा।
अगली श्रृंखला (1917-2017) में पहले 2 लेखों में कामिंटर्न और नई आर्थिक नीति पर केंद्रित करने की योजना है उसके बाद के 2-3 लेख स्टालिन कार्यकाल के विकास, पार्टी के अंतर्विरोरोधों और पार्टी नेतृत्व की गलतियों पर केंद्रित करने की। युवा मित्र अरविंद राय हर बात पर, स्टालिन के 'अत्याचारों' का हिसाब मांगते हैं। इतने जटिल मुद्दे पर अफवाहजन्य इतिहासबोध से निकले सरलीकृत सवाल का सरलीकृत जवाब नहीं दिया जा सकता। वैसे मेरे ब्लॉग (RADICAL, www.ishmishra.blogspot.com)में फेसबुक पर मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य के कमेंट 'मार्क्सवाद' शीर्षक की श्रृंखला में संकलित हैं, उनमें कुछ के आगे कोष्ठक में स्टलिन लिखा है। एक वामपंथी ग्रुप में स्टालिन पर घमासानी विमर्श चल रहा है। हमारे एक सीनियर, रामाधीन सिंह ने स्टालिन पर उतने लोगों को मारने का आरोप लगाया जो उस समय का सोवियत संघ की कुल आबादी का 4.75 गुनाव था और रोजा लक्जंबर्ग को 'घसीट-घसीट कर मारा'। युवा क्रांतिकारी नेता और बुद्धीजीव रोजा को 1918 में जेल से छूटने के बाद 1919 में जर्मनी की सोसल डेमोक्रेटिक सरकार के आदेश पर वर्दीधारी गुंडो ने मरकर लाश नहर में फेंक दिया था, लाश कई महीनों बाद मिली। 

साथियों सर्वज्ञ कोई नहीं होता न ही कोई अंतिम ज्ञान होता है उसी तरह जैसे कोई अंतिम सत्य नहीं होता, कभी का अंतिम सत्य कभी असत्य हो जाता है। ज्ञान एक निरंतर प्रक्रिया है और स्वस्थ जनतांत्रिक विमर्श उसका एक माध्यम है। महान साहित्यकार ऐंटोनियो चेखव कला-के-लिए कला को अपराध मानते थे, बहस के लिए बहस भी उसी कोटि में आती है। इन लेखों में प्रूफ की गलतियां रह गयी हैं, जो छपें में दूर कर दी गयी हैं। इलाहाबाद में समयांतर आनंद भवन के सामने शबद पुस्तक भंडार पर मिलता है। लेख लंबे हैं। आइए इस मंच को स्वस्थ, जनतांत्रिक विमर्श का माध्यम बनाएं, मैं भी कोशिस करूंगा कि कम-से-कम सठियाऊं।

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