भाजपा और कांग्रेस दोनों विश्वबैंक संचालित साम्राज्यवाद की सेवा में प्रतिस्पर्धी पार्टियां हैं और 1984 से तो कांग्रेस हिंदू तुष्टीकरण में भी भाजपा की प्रतिस्पर्धी बन गयी है, बस उसके पास बजरंगी फौज नहीं है, फासीवाद विरोधी ताकतें फिलहाल लुंज-पुंज हालत है, तमाम वामपंथी गुजरात चुनाव में राहुल की राजनैतिक परिपक्वता के गुणगान कर रहे थे, संगठित वाम हताशा में है असंगठित न तो क्रांति कर सकता है न ही चुनावी विकल्प दे सकने की हालत में है। ऐसे में गुजरात चुनाव में कांग्रेस ही फासीवाद का विकल्प दिखी। लेकिन लगता नहीं कि इससे कुछ सीख लेकर झंडे-दुकान की बात भूलकर जनांदोलन के जरिए सामाजिक चेतना का जनवादीकरण करने का अभियान चलाएं जिससे संख्याबल जनबल में तब्दील हो सके। आजमगढ़ से झरखंडे राय (सीपीआई) सालों सांसद रहे और उनके बाद कई बार कम्युनिस्ट से कांग्रेसी बने चंद्रजीत यादव। यह आरोप नहीं है कुछ निर्मम आत्मालोचना है। यजि संख्याबल को जनबल में तब्दील करने की नीति रही होती, तो उसका चुनावी संख्याबल 2009 तक आते-आते भाजपाई संख्याबल में तब्दील हो जाता? शायद पार्टी लाइन का मामला होगा! यगी ने आजमगढ़ का आतंकगढ़ नामकरण कांग्रेस राज में किया था जिसे बटाला हाउस फर्जी मुठभेड़ के बाद पुलिस और मृदंग मीडिया ले उड़ी। जिस लड़के को पुलिस ने मास्टरमाइंड कह कर मारा था, 17 साल का वह अपने गांव संजरपुर से जामिया के स्कूल पढ़ने के लिए जीवन में पहली बार रेल में बैठकर दिल्ली आया था। छः में से 3 गोलियां उसके सिर में ऊर्ध्वाधार (वर्टिकल लगी थीं), परिजनों को पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट तक नहीं दी गयी। जनहस्क्षेप और पीयूडीआर के हमलोग पकड़े गए लड़कों के परिजनों के साथ उनसे मिलने लोधी कॉलोनी स्पेसल सेल की हिरासत में मिलने गए, मिलने नहीं दिया गया। उसके बाद हमलोग पूर्व कानूनमंत्री शांतिभूषण के साथ तत्कालीन कांग्रेसी गृहमंत्री, पाटिल (नाम दिमाग से उतर गया) से मिलने गए, वे हमसे मिलने को तो राजी हो गए लेकिन राष्ट्र की सुरक्षा के हवाले से बंद लड़कों से मिलने की अनुमति देने में असमर्थता जाहिर की। विश्वबैंक की नीति पक्ष-विपक्ष दोनों उपने पास रखने की है। एक की विश्वसनीयता कम हो तो दूसरा आगे कर दो। मनमोहन की जगह मोदी और मोदी की जगह राजीव गांधी। कांग्रस की जीत पर राहत महसूस करना हमारा विकल्प नहीं मजबूरी है। फासीवादी आहटें इतनी तेज हैं कि एक व्यापक फासीवाद विरोधी मंच की जरूरत है। फासीवाद के विरोध का मतलब है पूंजीवाद का विरोध।
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