Friday, January 26, 2018

लल्ला पुराण 178 (विषयांतर)

इलाहाबाद विवि के एक ग्रुप में मेरी एक पोस्ट

एक बार फिर मैं चुंगी के सदस्यों से एक पीड़ा शेयर करना चाहता है। फिराक वाली पोस्ट इस पोस्ट की भूमिका है। मैं 1972-76 में इवि में था। इस ग्रुप में सुपर-सुपर सानियर चंद्रशेखर जी के अलावा कुछ '80 के दशक के हैं ज्यादातर सदस्य भूमंडलीकरण (1990 के बाद) पीढ़ी के मित्र हैं, जिनमें अपार सर्जनात्मक युवा ऊर्जा होनी चाहिए। युवाओं में ही ऊर्जा, उत्सुकता और कुछ करने की अनंत संभावनाएं होती हैं, बुड्ढों में तो हम जैसे कुछ सनकी होते हैं जो लगे रहते हैं। मैं वैसे सीनियर-जूनियर की श्रेणीबद्धता का पक्षधर नहीं था, लेकिन हमारे समय में परिसर में विमर्श का एक सलीका था, और ज्ञानवर्धक। यदि यह सार्थक विमर्श का मंच है तो विमर्श विषय-केंद्रित होना चाहिए। विषयांतर से विमर्श विकृत करना दुराग्रही जहालत की निशानी है और बौद्धिक अपराध। मैं बुजुर्ग-युवा शिक्षक हूं लेकिन यह भूल जाने की कुआदत पड़ गयी है कि 42 साल पहले 20 का था और इस प्रायोजित जहालत को जहालत कह देता हूं। यदि यह तफरीह और लफ्फाजी या भजन-कीर्तन का मंच नहीं है तो यह रुकना चाहिए। मैं एक पूर्णकालिक नौकर और पूर्णकालिक लेखक हूं। काम ज्यादा है और वक्त कम। इस ग्रुप में कुछ लोग हैं मेरा नाम पढ़ते ही उनके सिर पर वाम पंथ, नक्सल, जेयनयू के भूत सवार हो जाते हैं, बात चाहे पर्यावरण की हो रही हो या करणी सेना की। वे अपने नाम देश का टेंडर ईसू कर लेते हैं और देशभक्ति के ठेकेदार बन जाते हैं पूछो देशभक्ति होकी क्या है तो बंदे मातरम् करने लगते हैं। मैं उपरोक्त कुआदतन, ऐसे बौद्धिक अपराधियों का जवाब देने लगता हूं। मेरे जीवन में तफरीह-लफ्फाजी और भजन-कीर्तन का वक्त नहीं हूं। यात्राएं भी वही संभव हैं जिन्हें काम से जोड़ा जा सके। पिछले 5 सालों में इलाहाबाद की 15-20 यात्राएं हुईं। यदि जनमत चाहे तो मैं इस मंच से विदा लूं। फिलहाल यह मेरी अंतिम पोस्ट है।

No comments:

Post a Comment