भाजपा के धर्मोंमादी, लंपट सांसद, अजय सिंह उर्फ आदित्यनाथ को विवि में न घुसने देने के संघर्ष को तथा चात्रसंघ की साहसी अध्यक्ष, रिचा सिंह को सलाम जो परिषदियों की गुंडागर्दी, लंपटता तथा बनरघुड़कियों की परवाह किये बिना डटी रही। उसके नेतृत्वत्र में छात्रों की निर्भीकता ने प्रशासन को इतना भयभीत कर दिया कि छात्र-छात्राओं के साथ बदतमीजी करने वाले, बलात्कार की धमकी देने वाले गुंडों के खिलाफ कार्वाई की बजाय छात्रसंघ अध्यक्ष को ही कारण बताओ नोटिस दे दिया. अब निडर हो चुके ये बच्चे इन नोटिसों से डरने वाले नहीं. अब नोटिस जारी करने वालों के डरने की बारी है. अभी तक तो बुजुर्गी का एहसास नहीं होता था अब यदा-कदा होने लगा है, अक्सर लोगों को याद दिलाने पर। नवजवान साथियों-विद्यार्थियों- के इन संघर्षों से उम्मीद के धागों की श्रृंखला टूटती नहीं. खतरनाक वक़्त की मुश्किल लड़ाई को विस्तार देना है। हम लोग तो 1970 के दशक में सोचते थे कि शताब्दी के अंत तक बुर्जुआ संविधान को अप्रासंगिक बनाकर जनवादी संविधान का सपना देख रहे थे, जो निराधार नहीं था. इतिहास की गाड़ी में बैक गीयर तो नहीं होता लेकिन कभी कभी यू टर्न ले लेती है. यह यू टर्न ऐसा है कि बुर्जुआ संविधान खतरे में है. तो हमारी फौरी लडाई बुर्जुआ संविधान की रक्षा है इसलिए व्यापक फासीवादी गठबंधन की जरूरत है जिसकी शर्त है कि संघर्षरत समूह एक दूसरे के खिलाफ अभियान अगली लड़ाई तक मुल्तवी कर दें.
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