Sunday, November 15, 2015

हिमाकत

करता हूं हिमाकत भरने को ऐसी उड़ान
सीमा न हो जिसकी कोई भी आसमान
मगर रहता है सदा यह ध्यान जरूर 
ओझल न हो आंखों से धरती का नूर
(ईमिः 16.11.2015)

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