Saturday, November 21, 2015

भूमिकाः गुलेरीजी की आत्मा

गुलेरीजी की आत्मा (कहानी)
ईश मिश्र

सर्वाधिकारः सार्वजनिक. 
बौद्धिक संपदा अधिकारः लेखक
इक़बाल (स्वीकरण) इस कहानी के पात्र तथा घटनाएं वास्तविक हैं कानूनी दाव-पेच से बचने के लिए काल्पनिक रूप दिया गया है जिससे जिसपर भी लागू हो मेरे विरुद्ध कानूनी कार्वाई न कर सके.
भूमिका
1987-89 के दौरान कलम की मजदूरी से जीवनयापन करते हुए पता नहीं कहां से हिंदी-अंग्रेजी में कुछ कहानियां (कुछ पूरी -कई अधूरी) लिखने का समय मिल गया था. दो पूरी की गयीं कहानियां छपने के लिए 2 अलग अलग पत्रिकाओं में भेजा, दोनों ने अस्वीकृत कर दिया. दोनों कहानियों को पहले कुछ मित्रों को सुनाया था और दरअसल उन्हीं की प्रतिक्रियाओं से प्रोत्साहित होकर छपने भेजा था. एक वरिष्ठ मित्र तथा प्रख्यात साहित्यकार से इस कहानी पर राय मागने पर उन्होने स्पष्ट राय दिया कि यह कहानी नहीं है, लेकिन मैं उनसे सहमत नहीं हूं. पता नहीं इससे हतोत्साहित होकर या जीविकोपार्जन तथा राजनैतिक गतिविधियों के चलते समयाभाव में या दोनों ही कारणों से फिर कोई कहानी लिखने नहीं बैठा. कालांतर में वे मेरे कागजों के बियाबान में गुम हो गयीं. 2-3 साल पहले किसी अन्य फाइल की तलाश में इन दोनों कहानियों की फाइल मिल गयी. पन्ने तो पीले पड़ गये किंतु लिखावट ताजी. दो कहानियां-- सातवां सवार तथा कॉमरेड का नौकर खोने का ग़म है. उस समय के श्रोताओं में पत्रकार मित्र राजेश ने कंप्यूटर में सेव करने की सलाह दी. इसे तो टाइप कर दिया, दूसरी भी करने का समय निकालूंगा. 

विचार वस्तु से ही निकलते हैं कहीं हवा में से नहीं आते. अब 26-28 साल बाद याद नहीं है कि यह अमूर्तन किन मूर्त घटनाों से उपजा.  श्री निर्मल वर्मा की 10 साल बाद छपी कहानी सूखा पर विमर्श चल रहा था, कुछ पुराने क़मरेड व्यवस्था में शामिल होकर व्यवस्था बदलने(to wreck from within) शासक दलों में शामिल हो रहे थे तथा इसी उद्देश्य से कुछ नौकरशाही में चले गये. ऱाजीव  गांधी ठक्कर कमीसन की रिपोर्ट आने के बाद संसद को सूचित कर रहे थे कि इंदिराजी उनकी मां थीं. भाजपा राम मंदिर अभियान में शिलापूजन कार्यक्रम आयोजित कर रही थी. मुझे लगता है इन सब की खिचड़ी है. कहानी (या अकहानी) लंबी है, जो भी मुझे अनग्रहित करना चाहें, पढ़कर राय देकर मुझे कृतज्ञता ज्ञापन का अवसर दें.



No comments:

Post a Comment