Saturday, February 28, 2015

क्षणिकाएं 42 (631-640)

631
जाम छ्लकता रहा
मन मचलता रहा
हम पीते रहे
साथ जीते रहे
रात ढलती रही
प्यास बढ़ती रही
साथ चलते रहे
अागे बढ़ते रहे
(ईमिः04.02.2015)
632
हिंदू राष्ट्र नहीं हिंदु-विश्व बनेगा
अब फिर से दुनियां में वैदिक विज्ञान चलेगा
जनेगी  40-40 बेटे हर हिंदू अौरत
बदल जायेगी दुनिया की अाबादी की सूरत
ये पराक्रमी लडके छेड़ेंगे लवजेहाद
विधर्मियों का गुरूर करेंगे बरबाद
बढ़ती जायेगी हिंदु अाबादी
होगी तब ढंग से म्लेच्छ धर्मों की बरबादी
कहता है ये भागवतीय विज्ञान
महानता का संकल्प मागता बलिदान
होती है हिंदू नारी देवी समान
खुशी से करे प्रजनन में इक ज़िंदगी कुर्बान
राज करेगी तब दुनियां पर विश्व हिंदू परिषद
साध्वी साधुओं के प्रवचन से गूंजेगी विश्व संसद
बजेगा दुनियां में रामजादों का डंका
हर हरामजादे पर की जायेगी शंका
बंद हो जायेगा वैलेंटाइन डे का सिलसिला
प्रेम के पाप को कुचल देगा स्वयंसेवकों का काफिला
रहेगा साथ में एक हिडेन एजेंडा
घटेगी नहीं समलैंगिकों की संख्या
देते रहेंगे प्रचारक बालस्वयंसेवकों को दीक्षा
पहुंचने को विश्व-संसद होगी देनी अग्निपरीक्षा
कापिटॉल हिल में लगेगी शाखा
पेंटागन पर फहरेगा केशरिया पताका
नष्ट हो जायेंगे सब अंतरिक्ष यान
अंतरिक्ष यात्रा करायेंगे पुष्पक विमान
नारद पहुंचायेंगे देवलोक में खबर
करेंगे स्वागत देवता पुष्प बरसा कर
पंडित हवन कर बढ़ायेंगे पुण्य-प्रताप
ज्ञान-विज्ञान स्वाहा के मंत्र का करेंगे जाप
अोम नमो नमो स्वाहा
खेती-बाड़ी स्वाहा
किसान मजदूर स्वाहा
जल-जंगल स्वाहा
अादिवासी तो बार बार स्वाहा
स्वाहा स्वाहा स्वाहा स्वाहा
स्वाहा स्वाहा स्वाहा स्वाहा
बोलो श्री अडानी-अंबानी महराज की जय
बोलो श्री श्री वालमार्ट महराज की जय
नहीं बोलेगा जो श्री श्रीयों की जय
हिंदुविश्व में निश्चित है उसकी क्षय
नहीं सुनेगा जो सत्यनारायण की कथा
झेलना पढ़ेगा कन्या कलावती की व्यथा.
(ईमिः05.02.2015)
633
क़ाबिलियत-ए-सियासतदान
दोगलापन इस जम्हूरियत की असली पहचान है
50 साल पहले का दुष्यंत कुमार का बयान है
वो न समझेगा सियात ज़िंदा जिसमें इंसान है
झूठ-ओ-फरेब ही क़ाबिलियत-ए-सियासतदान है
लूटता है धरती अौर करता वायदा-ए-ओसमान है
कहता है लायेगा विदेशों में पड़ा कालाधन
खुशहाली के छलावे में फंस जाता अामजन
अंबानी का नाम अाते ही बंद हुई मोदी की जुबान
काले धन को बताया चुनावी जुमले की हवाई उड़ान
लूटते रहेंगे मिलकर सब मक्कार मुल्क तब तक
भक्तिभाव से अावाम मुक्त होता नहीं जब तक
होगा ही खत्म भ्रम एक-न-एक दिन अामजन का
करेगा तब तलब वो सही सही हिसाब कालाधन का
समझेगा जब हक़ीक़त सरकार-ओ-अडानी के साथ की
तोड़ देगा साजिश सत्ता की पीठ पर अंबानी के हाथ की.
(ईमिः15.02.2015)
634
दुनिया को मुट्ठी में करने का भरता वो दंभ
वहम-ओ-गुमां में होता जो उन्मत्त मदांध
कर नहीं सकता जुर्रत दुनिया मुट्ठी में बंद करने की
बंधी है मुट्ठी दुहराने को संकल्प इसकी सूरत बदलने की
लहरा रहे हैं हाथ लगाने को नारा इंक़िलाब का
आप को लगा हौसला अश्वमेध के ख़ाब का
बंधी है मुट्ठी करने को ज़ंग-ए-आज़ादी का ऐलान
लिखने को मानवता का एक मानवीय विधान
उठे हैं हाथ करने को मानव-मुक्ति का इजहार
नहीं मिलेगे इनमें चक्रवर्तीत्व से नीच विचार
भिंची है मुट्ठी करने को नाइंसाफी पर आघात
न कि दिखाने को विश्वविजय के बेहूदे जज़्बात
इरादे हैं बुलंद बनाने का एक ऐसा सुंदर जहान
शोषण दमन हों जहां गधे की सींग के समान
(ईमिः15.02.2015)
635
कहा था होगी जीत तुम्हारी समर्थन से आवाम के
जीतते ही बदल गये बोले हुई कृपा तुम पर राम की
लेनी थी शपथ तुमको देश के संविधान की
खाई तुमने कसम मगर ईश्वर के नाम की
(ईमिः15.02.2015)
636
सियासत तरह तरह के कुत्ते पालती हैं
उनके आगे शाही सपनों के टुकड़े डालती है
सब मिल दुम हिलाते हैं बॉस को देखकर
बड़े टुकड़े के लिये गुर्राते हैं इक-दूजे पर
झुंड में अजनबी पर बांझ से झपट पड़ते हैं
पत्थर उठाते ही दुम दबाकर भाग लेते हैं
इसीलिये मुझे बॉस से उतना नहीं
जितना उसके कुत्तों से डर लगता है
जो उसकी खुशामदी में बेबात भौंकते है
अपनी ही जमात को काटने दौड़ते हैं
मालिक की महिमा में मिमियाते हैं
विषय न हुआ तो पुराण बांचते हैं
तन जाते हैं पाते ही कुर्सी की पुचकार
दुम हिलाते हैं  देखते ही रोटी का अाकार
रथ के नीचे चलते हुये करते ऐलान
रथ के गतिविज्ञान की वही  हैं जान
कहते ये खुद को वफादार सजग प्रहरी प्रशासन का
इन्ही की रोशनी से जलता ज़ीरो-पॉवर बल्ब अनुशासन का
इनकी प्यार-पुचकार में भी14 न सही 4 इंजेक्शनों का डर होता है
मुझे बॉस से अधिक बॉस के कुत्तों से डर लगता है
(ईमिः17.02.2015)
637
ज़ुल्मतों के दौर में धधकते हैं दिलों में ज्वालामुखी
ख़ाक़ कर देते हैं  तख़्त-ओ-ताज़ फूटते हैं जब
(ईमिः17.02.2015)
638
इंसाफ की नई परिभाषा
बंदा नवाज़ की है नूतन अभिलाषा
इंसाफ की होगी अब नई परिभाषा
होगा जो भक्तिभाव में अत्यंत दक्ष
बनेगा वही वक्त का न्यायाध्यक्ष
होगी भक्तिभाव की यही निशानी
कर सके जो पानी को दूध दूध को पानी
अायेगा तब क़ाज़ी-ए-वक़्त का फैसला
जेल  भेजा जायेगा लाशों का क़ाफिला
चलेगा अदालत में तब ये मुक़दमा
क़ातिल को लगा था जहमतों से सदमा
क्यों था लाश की देह में इतना दम
ख़ंजर पे अा गया जिससे थोड़ा ख़म
रहा है इंसाफ का सदा यही तक़ाज़ा
दोषी ही भरता रहा है ख़ामियाजा
होगी तब लाशों के वारिशों की तलाश
क़ाज़ी-ए-वक़्त होते नहीं कभी हताश
पूरी होगी जैसे ही जिसके वारिश की तलाश
मुक्त कर दी जायेगी उसी दिन वो लाश
महामहिम का अंतिम फैसला
जारी रहेगा इंसाफ का सिलसिला
महामहिम के महामहिम की भी यही चाह
चिकनी होनी चाहिये इंसाफ की राह
(ईमिः18.02.2015)
639
कुछ खास बात है इन आंखों में
दिखती हैं अलग आज भी लाखों में
वैसा ही उमड़ता समंदर इनमें 35 साल बाद
देहाती संकोच में तब कहा नहीं यह बात.
(ईमिः28.02.2015)
640
गफलत तो बस इनका बहाना है
इरादा तो मन की मन माफिक उड़ान भरना  है
निगाहें शोख तो हैं मगर धारदार हैं
मिल्कियत के जिसके कई दावेदार
करती हैं ये सबके दावे तार तार

(ईमिः28.02.2015)

गफलत

गफलत तो बस इनका बहाना है
इरादा तो मन की मन माफिक उड़ान भरना  है
निगाहें शोख तो हैं मगर धारदार हैं
मिल्कियत के जिसके कई दावेदार
करती हैं ये सबके दावे तार तार
(ईमिः28.02.2015)

Friday, February 27, 2015

अांखें


  1. कुछ खास बात है इन अांखों में
  2. दिखती हैं अलग अाज भी लाखों में
  3. वैसा ही उमड़ता समंदर इनमें 35 साल बाद
  4. देहाती संकोच में तब कहा नहीं यह बात.
  5. (ईमिः28.02.2015)

Thursday, February 26, 2015

on land acquisition ordinance


JANHASTAKSHEP: A campaign against fascist designs
Delhi

Press Release
          
In absolutist monarchies all the land belonged to king anointed by God. In so-called democracies the source of validity shifted to people and governance by law. Monarchs needed no laws. They ruled and plundered through decrees and ordinances. The history never repeats itself, but echoes.  The echoes emanating from the present government of “development” are serious danger to the people and country. The most dangerous echoes expressed through ordinances, the number of which is unprecedented, not only in the history of Indian parliamentary democracy but probably in any representative democracy, pose serious threats of dispossession and consequently threat to bright to life of millions of the people, particularly the farmers, the Adivasis, traders, laborers and other downtrodden sections of the society. Most alarming of these ordinances is the draconian Land Acquisition ordinance aimed at dispossessing farmers and other marginalized sections of the society, whose livelihood is linked with agriculture to satisfy filthy corporate greed responsible for the current  economic crisis of the global capital. Surplus global capital seeks favorable sectors of risk free investment and the Real Estate is considered to be the safest and most beneficial.  Its bailing out by exchequer and dispossession of the vast population would further aggravate the crisis posing serious threat to the planet and its inhabitants. Even the colonial rulers did not resort to such arbitrary dispossession through Land Acquisition Act of 1854 is the basis for subsequent Acts, the latest being the Land Acquisition Act, 2013, unanimously enacted by parliament with the support of all the parties including BJP. Even the Act that is being replaced by this ordinance was also not pro-farmers but included certain concession for them in the farm of Social Impact Assessment (SIA) that provided some protection to rural people from the arbitrary land grab. Modi government is under the pressure of, and obligation to the corporate world which funded his multi crore campaign and cannot wait for the return till enactment of law by the parliament. Modi government has been blatantly flouting it electoral promises with the people and constitutional ethics but to fulfill his commitments to his funders is in hurry to grab agricultural lands for them. This reminds the bloody Enclosure movements in England of brutal dispassion of peasants for mercantile capitalist with the help of inhuman, anti-people draconian laws. But, as we have maintained above, history does not repeat itself only echoes and present horrifying echo shall be drowned by the slogans of peoples’ movement. Present protest of farmers at Jantar-Mantar marks the beginning. There shall be protests against dispassion and of course there shall repression that too shall be protested.

Janhatakshep, a human rights organization, committed to oppose the violations of human rights of people; help peoples’ movement; and to the campaign against the fascist designs of the ruling classes, fully supports and shall continue the support all the movements and protests against this draconian ordinance and would soon organize a meeting to discuss the nitty-gritty of the political economy of dispossession.

Ish Mishra
Convener

Tuesday, February 17, 2015

इंसाफ की नई परिभाषा

बंदा नवाज़ की है नूतन अभिलाषा
इंसाफ की होगी अब नई परिभाषा
होगा जो भक्तिभाव में अत्यंत दक्ष
बनेगा वही वक्त का न्यायाध्यक्ष
होगी भक्तिभाव की यही निशानी
कर सके जो पानी को दूध दूध को पानी
अायेगा तब क़ाज़ी-ए-वक़्त का फैसला
जेल  भेजा जायेगा लाशों का क़ाफिला
चलेगा अदालत में तब ये मुक़दमा
क़ातिल को लगा था जहमतों से सदमा
क्यों था लाश की देह में इतना दम
ख़ंजर पे अा गया जिससे थोड़ा ख़म
रहा है इंसाफ का सदा यही तक़ाज़ा
दोषी ही भरता रहा है ख़ामियाजा
होगी तब लाशों के वारिशों की तलाश
 क़ाज़ी-ए-वक़्त होते नहीं कभी हताश
पूरी होगी जैसे ही जिसके वारिश की तलाश
मुक्त कर दी जायेगी उसी दिन वो लाश
महामहिम का अंतिम फैसला
जारी रहेगा इंसाफ का सिलसिला
महामहिम के महामहिम की भी यही चाह
चिकनी होनी चाहिये इंसाफ की राह
(ईमिः18.02.2014)

ज़ुल्मतों के दौर में

ज़ुल्मतों के दौर में धधकते हैं दिलों में ज्वालामुखी
ख़ाक़ कर देते हैं  तख़्त-ओ-ताज़ फूटते हैं जब
(ईमिः17.02.2015)

सियासत के कुत्ते

सियासत तरह तरह के कुत्ते पालती हैं 
उनके अागे शाही सपनों के टुकड़े डालती है 
सब मिल दुम हिलाते हैं बॉस को देखकर 
बड़े टुकड़े के लिये गुर्राते हैं इक-दूजे पर 
झुंड में अजनबी पर बांझ से झपट पड़ते हैं
पत्थर उठाते ही दुम दबाकर भाग लेते हैं
इसीलिये मुझे बॉस से उतना नहीं
जितना उसके कुत्तों से डर लगता है
जो उसकी खुशामदी में बेबात भौंकते है
अपनी ही जमात को काटने दौड़ते हैं
मालिक की महिमा में मिमियाते हैं
विषय न हुअा तो पुराण बांचते हैं
तन जाते हैं पाते ही कुर्सी की पुचकार
दुम हिलाते हैं  देखते ही रोटी का अाकार
रथ के नीचे चलते हुये करते ऐलान 
रथ के गतिविज्ञान की वही  हैं जान
कहते ये खुद को वफादार सजग प्रहरी प्रशासन का 
इन्ही की रोशनी से जलता ज़ीरो-पॉवर बल्ब अनुशासन का  
इनकी प्यार-पुचकार में भी14 न सही 4 इंजेक्शनों का डर होता है
मुझे बॉस से अधिक बॉस के कुत्तों से डर लगता है 
(ईमिः17.02.2015)

Sunday, February 15, 2015

शपथ संविधान की

कहा था होगी जीत तुम्हारी समर्थन से आवाम की
जीतते ही बदल गये बोले हुई कृपा तुम पर राम की
लेनी थी शपथ तुमको देश के संविधान की
खाई तुमने कसम मगर ईश्वर के नाम की

(ईमिः15.02.2015)

भिंची मुट्ठी

दुनिया को मुट्ठी में करने का भरता वो दंभ
वहम-ओ-गुमां में होता जो उन्मत्त मदांध
कर नहीं सकता जुर्रत दुनिया मुट्ठी में बंद करने की
बंधी है मुट्ठी दुहराने को संकल्प इसकी सूरत बदलने की
लहरा रहे हैं हाथ लगाने को नारा इंक़िलाब का
आप को लगा हौसला अश्वमेध के ख़ाब का
बंधी है मुट्ठी करने को ज़ंग-ए-आज़ादी का ऐलान
लिखने को मानवता का एक मानवीय विधान
उठे हैं हाथ करने को मानव-मुक्ति का इजहार
नहीं मिलेगे इनमें चक्रवर्तीत्व से नीच विचार
भिंची है मुट्ठी करने को नाइंसाफी पर आघात
न कि दिखाने को विश्वविजय के बेहूदे जज़्बात
इरादे हैं बुलंद बनाने का एक ऐसा सुंदर जहान
शोषण दमन हों जहां गधे की सींग के समान
(ईमिः15.02.2015)

Saturday, February 14, 2015

क़ाबिलियत-ए-सियासतदान

क़ाबिलियत-ए-सियासतदान

दोगलापन इस जम्हूरियत की असली पहचान है
50 साल पहले का दुष्यंत कुमार का बयान है
वो न समझेगा सियात ज़िंदा जिसमें इंसान है
झूठ-ओ-फरेब ही क़ाबिलियत-ए-सियासतदान है
लूटता है धरती अौर करता वायदा-ए-ओसमान है
कहता है लायेगा विदेशों में पड़ा कालाधन
खुशहाली के छलावे में फंस जाता अामजन
अंबानी का नाम अाते ही बंद हुई मोदी की जुबान
काले धन को बताया चुनावी जुमले की हवाई उड़ान
लूटते रहेंगे मिलकर सब मक्कार मुल्क तब तक
भक्तिभाव से अावाम मुक्त होता नहीं जब तक
होगा ही खत्म भ्रम एक-न-एक दिन अामजन का
करेगा तब तलब वो सही सही हिसाब कालाधन का
समझेगा जब हक़ीक़त सरकार-ओ-अडानी के साथ की
तोड़ देगा साजिश सत्ता की पीठ पर अंबानी के हाथ की.

(ईमिः15.02.2015)

Friday, February 13, 2015

DU 59 (मोदी विमर्श 44)

Congress lost in 1996 for starting neo-liberal devastating policies in the name of economic reform leading to devaluation of currency by almost 400% and NDA I lost due to its not only continuation of the same policies but giving it unprecedented acceleration. Arun Shouri followed by Arun Jaitly were so impatient to sell out country's resources at throw-out prices for reasons best known to them, though declared assets multiplied many times. The so-called democracy allows only right to vote this or that ruling class party with concurrence of interests.The electoral left has become so-called. They again voted back Congress, which, due to lack of vision and arrogance of power went ahead with anti-national neo-liberalization policies. With Modi becoming the synonym to nation, the invisible hands of the market became visible on Modi's back. Jaitly arrogantly claimed on the day of Delhi results that the economic reform, i.e. the process of mortgaging and selling away the peoples' resources to corporate would go ahead unabated. This would prove to be nemesis of Modi government who might declare war with Pakistan if the US allows to its both agents, as last resort. If this government lasts for 5 years and goes ahead with its anti-people pro-corporate policies, the country's economy would be ruined with massive increases unemployment, poverty and inequality that would inevitably give rise to crime and pave the way for more criminals to be lawmakers. The prudent people in BJP, hopefully would recognize this danger and advise the government to apply a brake in its attempt to mortgage the country to corporate.

लल्ला पुराण 183

@Santosh Tiwari-तमाम गुंडे अौर लफ्फाज भी इलाहाबाद विवि छात्रसंघ के पदाधिकारी हुये हैं, पिछले कई सालों से तो छात्रसंघ गुंडों अौर दलाों का अड्डा बना हुअा है, लाखों चुनाव में खर्च किया अौर दलाली से वसूला. इन नेताओं का कोई ईमान धर्म नहीं होता. लाल भर दलाली अौर लंपटता करेंगे अौर इमतहान में नकल. कई नेता तो लकल करने के लिये इम्तहान के समय अनावश्यक बवाल करके जेल चले जाते थ. रामाधीन सिंह से पूछ लीजिये. इविवि छात्रसंघ दलाली का अड्डा तथा छात्र अांदोलन का कलंक बन चुका है. दलीय अावाजाही अपवाद नहीं नियम है,

Thursday, February 12, 2015

मोदी विमर्श 43

Inder Mohan Kapahy CONGRATULATIONS FOR INTROSPECTION. But  the cause of BJP's defeat is not just taking support odf Suchha-sauda that it does use the help of all kinds of religious frauds and makes them not only candidates but ministers to exploit peoples religious feelings and superstitions. It lost in Delhi for accentuating the anti-people policies of the previous governments, the causes of their successive electoral losses. But those lacking sense of history don't lrarn from history. Modi government has taken big leap in the development of Adani-Ambani on the cost of the dispossession of peasants and workers through anti-people ordinances on behest of their global corporate masters. The pro-people in BJP (if any) must rise against the leadership of lumpen Sadhus-Sadhvis bent on mortgaging the country. No government has so shamelessly and openly has shown so much loyalty to Money bag whose hand are on the back of the PM. You can fool some people some time but not all the people all the time. If the PM  wants to refute the charge of being anti-national, he must come up with a clear stand on Ambani whose name prominently figures in the list of black-moneyed Swiss accounts. Bringing back black money was one of the main election planks of Modi. Amit Shah has clearly and foolishly confessed that it was just an election polemics implying that Modi's words are not to be trusted. Hopefully the pro-corporate, anti-people politics meets the dust elsewhere too. Country is larger than party.

शिक्षा अौर ज्ञान 51

शिक्षिका  की नियुक्ति पत्र की प्राप्ति पर एक युवा फेस्बुक मित्र को बधाई संदेश ---

Apoorva Yadav मुबारक हो. अगर इस मुल्क के 25 % शिक्षक शिक्षक होने का महत्व समझ लें तो क्रांति की 75% अाधार तैयार हो जाय. बच्चे बहुत तेज होते हैं लेकिन हम -- मां-बाप तथा शिक्षक उनकी प्रतिभा को प्रोत्साहित करने की बजाय उन्हें तोता बनाते हैं. बच्चों को याद दिलाते रहना पड़ता है कि वे दिमागदार प्राणी हैं. शिक्षक का काम है -- बच्चों के साथ मित्रवत, जनतांत्रिक, समतापूर्ण,(समता गुणात्मक अवधारणा है, माक्षात्मक नहीं) पारदर्शी व्यवहार से उन्हें दिमाग के अनवरत इस्तेमाल के लिये उकसाते रहना; विरासत में मिली रूढ़ियों अौर पूर्वाग्रहों की जगह विवेकसम्मत नैतिकता अपनाने को प्रोत्साहित करना. शिक्षक को प्रवचन से नहीं मिसाल से पढ़ाना होता है. उन्हें रटाओ मत कि 2+2=4 बल्कि उदाहरण से समझाओ कि 2+2=4 कैसे अौर क्यों होता है वे अपने अाप 32+18 =50 समझ जायेंगे. तुम तो क्रांतिकारी कन्या हो. शिक्षण नौकरी तो है ही मगर अलग ढंग की नौकरी है. अच्छे शिक्षक का बच्चों पर दूरगामी असर पड़ता है.  वक़्त से अागे चलो अौर लीक से हट कर चलने के कष्टों का अानंद उठाओ. शुभकामना.

मोदी विमर्श 42


H.k. Singh देश के झूठे बादों क्या? मंहगाई का क्या? काले धन का क्या हु्अा? अंबानी का नाम सर्वोपरि है अौकात है 56 इंच के सीने के मदारी की उसकी गर्दन पर हाथ डालने की? जिसका हाथ उसकी पीठ पर है उस पर हाथ डाले. हर काला बाजारी देशद्रोही है, उनके हाथ जिनकी पीठ पर हों उन्हें क्या कहियेगा? बेशर्मी की शायद कोई हद नहीं होती. अाप से क्रांति की उम्मीद नहीं है, वह भी भाजपा की ही तरह शासक वर्ग की ही पार्टी है, उसने फासीवादी क़ॉरपोरेटी अभियान के अहंकार को 1 झटका दिया है.

H.k. Singh मेरा सवाल बंदानवाज़ की लफ्फाजी अौर उसे मान लेने वाले पढ़े-लिखे लोगों की जहालत का है. 100 दिन में हर हिंदुस्तानी के खाते में 15 लाख जमा होना था, जब नाम उनके अाका का अाया तो साप सूंग गया. मेरा सवाल प्रधानमंत्री पद की गरिमा का है यदि प्रधानमंत्री की पीठ पर किसी देशद्रोही काला बाजारिये का हाथ हो. मेरा सवाल 10 लाख के ड्रेस के लिये मुल्क की नीलामी का है. मुल्क मोदी-अंबानी का नहीं, हमारा अाप का है. मुल्क बडा है मंदिर से. सवाल अध्यादेशों के जरिये किसानों-व्यापारियों की बेदखली का है.

H.k. Singh मैंने सघ से ही शुरुअात किया था 17-18 की उम्र में इलाहाबाद अभाविप का प्रकाशन मंत्री था, रामाधीन जी से पूछ लीजिये. अफवाह-जन्य इतिहास के जहालतपूर्ण बौद्धिकों का श्रोता अौर शिविरों में बाल स्वयसेवकों का शोषण भी देख चुका हू. शाखा में नेता में अटूट दिमागबंद अास्था के बहुत गीत गये हैं. भक्ति भाव त्यागकर दिमाग का इस्तेमाल करेंगे तो अाप भी इस जनद्रोही-राष्ट्रद्रोही, अधोगामी कपटजाल से मुक्त हो सकेगे.

मोदी विमर्श 41

Ramadheen Singh अाज का दिन महत्वपूर्ण है कि अंबानी के चाकर की लफ्फाजी का पर्दाफाश हो गया. 100 दिन में काला धन वापस ला रहा है. 56 इंच का सीना है तो कहो नफरत के बादशाह को, गोडसे के वारिस को कि दोनों अंबानियों के नाम काला धन में ऊपर है, दम है तो अपनी पीठ से अंबानी का हाथ झटक उसके गर्दन पर हाथ डाले. लेकिन जिसकी कृपा से 10 लाख का कुर्ता पहनेगा उस पर हाथ कैसे डालेगा. वैसे भी नफरत अौर भय की सियासत करने वाले कायर अौर डरपोक होते हैं. उस पार्टी का क्या कहें जिसके मुरली मनोहर जोशी अौर रामाधीन सिंह अमित शाह जैसे क्लीनचिटियों,  साक्षी महराज जैसे जाहिलों की मातहती करें. रुदााली के लिये बुलाइये कि  8 महीने में मोदी ज़ीरो हो गया. किसी अौर प्रधानमंत्री ने दिल्ली के चुनाव में इतनी सभायें नहीं किया न ही किसी ने भाा की मर्यादा की इतनी  ऐसी की तैसी की. अब हार गया तो ठीकरा किरन बेदी पर.. तरस  अाती है अाप जैसे पढ़े लिखे लोगों पर जो ढोंगी साझुओं अौर ज़ाहिल लंपटों की मातहती को अभिशप्त  हैं.

मोदी विमर्श 40

H.k. Singh if we wait for long country would have been sold out, why silence on black money?why so hurry to dispossess the farmers and tribal; the people employed in retail, to sell out insurance that is one of the most efficient sectors...... through ordinances? how can a black marketeer stashing money in foreign banks dare to put his hand on the back of a PM of a so-called biggest democracy? just apply your mind sir as that is specific human attribute that distinguishes us from animal kingdom. stop devotion and rise against neo-colonization of the country. The difference between colonialism and neo-colonialism is that there is no need of lord clive, Shirajjudaulas have turned into Mir zafars.

मोदी विमर्श 39

इतिहास गवाह है.   जब फासिस्ट हताश होता है, उत्पात मचाता है. रक्तपात अौर बाबरीविध्वंश की धर्मोंमादी लोकप्रियता कम होने लगी तो गुजरात में पैशाचिक उत्पात मचाया. काले धन वालों में अंबानी ऊपर है लेकिन यह मुद्दा तो बंदानवाज का चुनावी शगूफा था, जिसका हाथ उनकी पीठ पर है उसकी गर्दन पर हाथ कैसे डालेंगे? 10 लखिया कुर्ता चाय की कमाई से कैसे बनेगा? जागिये ऐसा न हो कि जब तक तंद्रा टूटे मुल्क बिक गया हो कारपोरेटी लुटेरों के हाथ.

मोदी विमर्श 38

इतनी जल्दी इतनी अलोकप्रिय सरकार शायद ही कभी केंद्र में हुई होगी । साल भर मोदी और अमित शाह यूं ही जी जान से मेहनत करते रहे तो अलोकप्रियता के मामले में इमरजेंसी के टाइम की इंदिरा सरकार का भी रिकॉर्ड टूटना तय है ।
बाकी लहर फुस्स होने और "विकास" का गर्भपात होने के बाद और दंगे फसाद तेज़ होंगे , और इनका असली फासिस्ट राक्षसी चेहरा इसी दौर में दिखेगा । जब फासिस्ट हताश होता है, उत्पात मचाता है.

Tuesday, February 10, 2015

मोदी विमर्श 37

दिल्ली के चुनाव का संचालन महामहिम जी खुद कर रहे थे. अाज तक किसी प्रधान मंत्री ने दिल्ली विधान सभा चुनाव में इतनी नुक्कड़ सभायें नहीं किया था न ही भाषा की मर्यादा की इतनी रेड़ लगाई. मोदी जी को सुनकर इलाहाबाद विवि के दिनों के  लंपट "छात्र" नेताओं की  लफ्फाजी  याद  आती है. अब तो काले धनियों का नाम अा गया है, अंबानियों का नाम सर्वोपरि है.   56 इंच के सीन  की डींग हांकने वाले लफ्फाज, विकास के पापा के अंदर दम है तो अपनी पीठ से अंबानी का हाथ झटक उसकी गर्दन पर हाथ डाले. किंतु भय की सियासत करने वाले कायर अौर डरपोक होते हैं.

मुझे तो इस मुल्क की शिक्षित अाबादी पर तरस अाता है जो दिमाग ताक

पर रखकर पशुकुल में वापस जाने को अड़ जाते हैं. लोस चुनाव के पहले 

किसी मोदी भक्त प्रोफेसर से उनके अाराध्य का 1 गुण बताने को कहने 

पर कहते थे 16 मई को बतायेंगे, यही जवाब सड़कछाप बजरंगी लंपट भी 

देता था.

Friday, February 6, 2015

विस्थापन का राजनैतिक अर्थशास्त्र

विस्थापन का राजनैतिक अर्थशास्त्र
ईश मिश्र
राज्यसभा में बहुमत के अभाव में, अध्यादेशों के जरिये मौजूदा सरकार विकास की की अश्चर्यजनक हड़बड़ी से विकास के मॉडल का सवाल एक बार फिर विवाद के घेरे में आकर तथाकथित जनतंत्र में टिकाऊ विकास के मुद्दे को विमर्श के केंद्र में ला दिया है. तथाकथित इसलिये कि इस जनतंत्र में जन (कामगर,आमजन)  उसी तरह गायब है जैसे प्लेटो के रिपब्लिक से पब्लिक (उत्पादक वर्ग) या जैसे गधे के सिर से सींग. करनी-कथनी का विरोधाभास (दोगलापन) पूंजीवाद की बपौती नहीं है, बल्कि सभ्यता के हर युग यानि हर वर्ग समाज की उसी तरह चिरंतन प्रवृत्ति रही है जैसे शोषण-दमन हर वर्ग समाज के राजनैतिक अर्थशास्त्र का मूल मंत्र. पूंजीवाद सर्वाधिक विकसित वर्ग समाज है, इसलिये यह विरोधाभ भी चरम पर है. भारत में भूमि अधिग्रहण के मौजूदा अध्यादेश के परप्रेक्ष्य में विनाश की बुनियाद पर टिकी पूंजीवादी विकास की अवधारणा ने करोड़ों देशवासियों के समक्ष अभूतपूर्व पैमाने पर जबरन विस्थापन का भयानक खतरा पैदा कर दिया है. वैसे तो पूंजीवाद की बुनियाद ही विस्थापन पर पड़ी लेकिन इसके मौजूदा नवउदारवादी चरण में यह समस्या विकराल रूप धारण कर चुकी है. ऐसे में विकास की अवधारणा पर विमर्श वांछनीय है. इन सवालों पर गहन चिंतन की जरूरत है – क्या है विकास? कैसा विकास? किसका विकास? किसके लिए विकास? किसकी कीमत पर? इसके लिए विस्थापन का राजनैतिक अर्थशास्त्र समझना अवश्यक है. मार्क्सवादी चिंतक डैविड हार्वे अपनी पुस्तक नव साम्राज्यवाद (New Imperialism) में विस्थापन द्वारा संचय (Accumulation by Dispossession) अध्याय में इसका इस्तेमाल निजीकरण-उदारीकरण के संपूर्ण नवउदारवादी अर्थकतंत्र के लिए किया है किंतु इस पर्चे का सरोकार विकास के नाम पर किसानों के जबरन विस्थापन और दंगों के परिणामस्वरूप अल्पसंख्यकों तथा दलितों के आंतरिक विस्थापन तक सीमित है.

सामंतवाद के खंडहरों पर पूंजीवाद की अट्टालिका विस्थापन की बुनियाद पर खड़ी हुई. ऐतिहासिक प्रगति को निजी मुनाफा कमाने-बढ़ाने की गतिविधियों का अनचाहा परिणाम बताने वाले, औद्योगिक क्रांति के शुरुआती दौर के जाने-माने पूंजीवादी अर्थशास्त्री, ऐडम स्मिथ, असमानता की जड़, मूल पूंजी, या कार्ल मार्क्स की शब्दावली में तथाकथित आदिम संचय का श्रोत किसी मिथकीय अतीत में साधू-संतों सा अनुशासित जीवन की बचत बताते हैं. कार्ल मार्क्स इस मिथकीय फरेब का पर्दाफास कर हकीकत बयान करते हैं कि तथाकथित आदिम संचय का श्रोत अनुशासित जीवन की बचत नहीं बल्कि विकास के नाम पर किसानों-कारीगरों का व्यापक विस्थापन था जो नवउदारवादी वर्तमान में अपने क्रूरतम रूप अख्तियार कर रही है. तटस्थता के मुखौटे में राज्य बाजार का अदृष्य हाथ नहीं रहा, खुल कर उसकी लठैती करने लगा है, जिसका सबसे बेशर्म उदाहरण ताजा भूमि अधिग्रहण अध्यादेश. जिसके तहत सरकार कॉरपोरेट की अक्षय भूख मिटाने के लिये कभी भी किसानों, शिल्पियों, कारीगरों, खेत मजदूरों, तथा हाशिये पर जी रहे अन्य ग्रामीण तपकों की थाली छीन कर उनके पेट पर तगड़ा लात मार कर शहरों की  फुटपाथों पर फेंक सकती है. क़ारपोरेट नीत विकासनीति, अतिरिक्त पूंजी से पैदा मौजूदा पूंजीवादी संकट का उपाय आवारा भूडलीभूमंडलीय पूंजी के तीसरी दुनिया के किसानों की बेदखली में निवेश में ढूंढ़ रहे हैं. भूडलीभूमंडलीकरण के बाद और किसी चीज का भूडलीभूमंडलीकरण हुआ हो या नहीं पूंजी का चरित्र भूडलीभूमंडलीय हो गया है.यह देशकाल की सीमा पार कर गयी है.    हमारे विकासपुरुष प्रधानमंत्री सस्ते, कुशल श्रम की उपलब्धता का वायदा कर ही चुके हैं. विस्थापन होगा तो विरोध भी होगा. विरोध होगा तो दमन भी होगा. दमन का भी विरोध होगा. हम इतिहास के एक कठिन और निर्णायक दौर से गुजर रहे हैं, जनतंत्र के चहितों को लंबे संघर्ष के लिये कमर कस कर रखना है.
इस पर्चे का मकसद, विकास की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में विस्थापन के राजनैतिक-अर्थशास्त्र की समीक्षा और विस्थापन विरोधी आंदोलनों की सफलता-असफलता पर विमर्श की जरूरत तथा आंदोलनों के समर्थन की रणनीति पर चर्चा करना है.