Saturday, July 16, 2011

gadya-padya

@ख़ुर्शिद अनवर: तुम्हारी तुक्बंडी ने तो और भी हौसला अफ्जाइ किया चेतावनी की बजाय. पहले कह्ता था जब ईश कविता लिख सकता है तो कोई भी लिख सकता है और अब तो खुर्शीद भी.@ऋतु आशाढ-सावन के द्वंद्व पर एक गद्यात्मक छोटी टिप्पणी लिखा था वह चिपकी ही नही. अब पद्यात्मक लिखने कि कोशिश करुंगा.@चंद्र प्रकश झा: यार, अपने आप कई दिन ड्राई हो जते हैं और अब तो कालेज भी खुल रहा है तो ड्राई ही ड्राई होगा.@जगजित: कोइ सजग-वजग और तत्पर नही रहता पहले जैसा ही हूँ - लापरवाहह और आवारा. बस कभी कभी गद्य का पद्य हो जता है.
मै गांधीवाद-विरोधी गाँधी का प्रशंसक हूँ इसलिए गाँधी कहा जना अति सम्मान की बत मानता हूँ. स्वतंत्रता-आंदोलन के नेताओं मे गाँधी ही एकमात्र मौलिक चिंतक हुए हैं जिन्होंने "एसेन्स एंड अपीअरेंस" के अंतर्विरोधों को त्रांसेंद किया. गांधी इतिहास के चंद शक्शियतो मे हैं जो अपने जीवनकाल मे हही किम्वदंति बन गये. गाँधी का राज्य का सिद्धांत, रूसो के जनरल विल की तरह आधुनिक औद्योगिक युग के लिये अव्यावहारिक होने बव्जूद मौलिक है और सहभागी जंतंत्र का एक सैद्धांतिक नमूना. उस तरह कि जवाबदेही चुनावी जंतंत्र को भ्रष्टाचार से कुछ हद तक मुक्त कर सकता है.

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