Wednesday, July 20, 2011

बेचैन आँखें

क्या कहती हैं ये चकित हिरनी सी बेचैन आँखें?
कभी कुछ कहती हैं, कभी बतातीं कुछ और बातें
एक-एक करके कह डालना चाहती हैं सबकुछ
रह जाता है फिर भी कहने को बहुत कुछ
तोते सी नाक के नीचे अर्थपूर्ण मंद मुस्कान
इरादा दर्शाती भरने की कन्चनजंगा की ऊंची उड़ान

बादलों के बीच जो रोशनी दिख रही
काले पर्दों के पीछे लड़की है एक खड़ी
खोज रही हैं आँखे कोइ असंभव लक्ष्य
मद्धिम मुस्कान है उसके आशावादिता का साक्ष्य

मुस्कराती है जब प्रकाश हो मद्धिम
दांत लगते हैं कंचनजंगा कि धवल शिखाओं माफिक

बेचैन आँखें
सजकर आती होती है जब कोइ उत्सव की बात
अलग तब भी दिखती हो हों जब और लोग भी साथ
काले परिधान में वह  जब होती है
बादल फाड़कर निकलता सूरज दिखाई देती हो.

आँखों का रूमानी अंदाज़ और केशों की काली घटा
अर्थपूर्ण मंद मुस्कान बिखेरती अद्भुत छठा
दो लटों के बीच चमकता मोती
फबता इतना नहीं यदि गर्दन यदि कमसिन न होती
उन्नत उरोजों पर फ़ैली है  माला ऐसे
छलकने से रोकना चाहती  हो प्याला जैसे
[ईमि/20.7.2011]

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